Book Title: Prakrit Vyakaran Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 41
________________ 2. 3. 5. तेण/तेणं (3/1) दिवायरो (1/1) देखिज्जइ/देखिज्जए/देखीअइ/आदि। नियम 2- कर्मवाच्य में तृतीया विभक्ति होती है। कन्नाए/कन्नए (3/1) लज्जिज्जइ/लज्जिज्जए/लज्जीअइ/आदि। नियम 2- भाववाच्य में तृतीया विभक्ति होती है। पुण्णेण/पुण्णेणं (3/1) हरी (1/1) देक्खिओ। नियम 3- कारण व्यक्त करने वाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। हरि/हरी (1/1) पंचहि/पंचहिं/पंचहिँ (3/2) दिणेहि/दिणेहिं/ दिणेहिँ (3/2) एकेण (3/1) कोसेण/कोसेणं (3/1) गच्छी। .. नियम 4- फल प्राप्त या कार्य सिद्ध होने पर कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। सो (1/1) बारहहि/बारहहिं/बारहहिँ (3/2) वरिसेहि/वरिसेहिं/ वरिसेहिँ (3/2) वागरणं (2/1) पढइ/पढेइ/पढए/आदि। ... नियम 4- फल प्राप्त या कार्य सिद्ध होने पर कालवाचक शब्दों में, तृतीया विभक्ति होती है। पुत्तेण/पुत्तेणं (3/1) सह बप्पो (1/1) गच्छइ/गच्छेइ/गच्छए/आदि। नियम 5- सह, सद्धिं, समं (साथ) अर्थ वाले शब्दों के योग में तृतीया . विभक्ति होती है। बप्पो (1/1) पुत्तेण/पुत्तेणं (3/1) समं खेलइ/खेलेइ/खेलए/आदि। नियम 5- सह, सद्धिं, समं (साथ) अर्थ वाले शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जलं (2/1) अथवा जलेण/जलेणं (3/1) अथवा जलत्तो (5/1) विणा कमलं (1/1) न विअसइ/विअसेइ/विअसए/आदि। नियम 5-'विणा' शब्द के साथ द्वितीया, तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है। सो (1/1) नरिदेण/नरिदेणं (3/1) अथवा नरिंदस्स (6/1) तुल्लो अत्थि । नियम 7- तुल्य (समान, बराबर) का अर्थ बताने वाले शब्दों के साथ तृतीया अथवा षष्ठी विभक्ति होती है। 7. 10. 32 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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