Book Title: Prakrit Vidya 2000 04
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 35
________________ केवल आचार, वरन् विचारों के क्षेत्र में भी अहिंसा की बात कही है। “इतिहासकार भी यह स्वीकार करते हैं कि वैदिक ब्राह्मणों को महावीर की अहिंसा और जीवन सिद्धांतों से प्रभावित होकर यज्ञ-यागादि का रूप बदलना पड़ा। उसके बाद जो वैदिक-साहित्य निर्मित हुआ, उसमें 'ज्ञानयज्ञ' को प्रमुखता दी गई, 'कर्मयज्ञ' को महत्त्व दिया गया और आधिभौतिक स्वरों के स्थान पर आध्यात्मिक स्वर गूंजने लगे। आचार और विचार दोनों में ही 'अहिंसा' को मान्यता दी गई।"" राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भी भगवान् महावीर के 'अहिंसा' दर्शन से प्रभावित हुए थे। उन्होंने भगवान् महावीर की अहिंसक, त्यागपूर्ण जीवन शैली एवं सद्विचारों को चरितार्थ किया था। भारत के संविधान की मूलप्रति के मुखपृष्ठ पर चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर' का दिगम्बर मुद्रा में ध्यानस्थ-चित्र अंकित है। उसमें उल्लिखित है“Vardhamana Mahavir, the 24th Tirthankara in a meditative posture, another illustration from the Calligraphed edition of the Constitution of India. Jainism is another stream of spiritual renaissance which seeks to refine and sublimate man's conduct and emphasises Ahimsa, nonviolence, as the means to achieve it. This became a potent weapon in the hands of Mahatma Gandhi in his political struggle against the British Empire” “जैनमत आध्यात्मिक पुनर्जागरण की एक विशिष्ट धारा है, जो कि मनुष्य के आचार-विचार को उदात्त बनाने के साथ-साथ इसकी प्राप्ति के लिए अहिंसा पर बल देता है। अहिंसा महात्मा गाँधी के हाथों में ब्रिटिश साम्राज्य से राजनैतिक संघर्ष करने में सशक्त अस्त्र बनी।" महात्मा गाँधी ने अहिंसा के बल पर भारत को गुलामी से मुक्त कराया और विश्व स्तर पर पराधीन राष्ट्रों में भी इसी शस्त्र के द्वारा स्वाधीनता की चेतना जागृत की। तीर्थंकर महावीर का विलक्षण व्यक्तित्व था। वे विशेष ज्ञान-ज्योति से सम्पन्न थे। उनके सिद्धांत 'आत्मवाद' पर आधारित थे। वे आत्मा की अनंत शक्तियों पर विश्वास करते थे। उन्होंने आत्मिक शक्ति का परिचय पाने के लिए पुरुषार्थ' पर बल दिया। उन्होंने आत्मा को अपना चरम एवं परम उत्कर्ष करने का आत्मविश्वास जगाया। जिससे मनुष्य अपने पुरुषार्थ के माध्यम से अंतर में बैठे ईश्वरत्व को पा सकता है।" जो अपने आपको पा लेता है, वही ईश्वर बन जाता है।"" वास्तव में, "ईश्वर उन शक्तियों का उच्चतम शालीनतम और पूर्णतम व्यक्तीकरण है, जो मनुष्य की आत्मा में निहित होती है। कर्मवादी तीर्थंकर भगवान् महावीर का मानना है कि "अच्छे-बुरे कर्म एवं उनके परिणाम के लिये आत्मा स्वयं उत्तरदायी है।" उन्होंने सम्पूर्ण मानव-जाति को ऐसे कर्म प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000 40 33

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