Book Title: Prakrit Vidya 2000 04
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 72
________________ : गुणकीर्ति 15वीं शती के मराठी भाषा के कवि हैं । इन्हें 8. गुणकीर्त गृहस्थावस्था में गुणदास नाम जाना जाता था । 'धर्मामृत' नामक प्राचीनतम गद्यमय लिखित ग्रन्थ में यद्यपि द्रोणगिरि पर्वत और गुरुदत्त मुनि का उल्लेख नहीं किया गया है, किन्तु 'फलहोडि ग्रामि आहूढ कोडि सिद्धासि नमस्कुरु माझा । ' कहकर 'फलहोडि ग्राम' से मुक्त हुए 82 करोड़ सिद्धों को नमस्कार किया गया है। यहाँ 'फलहोडि ग्राम' का निहितार्थ 'फलोडि ग्राम' के समीप स्थित 'द्रोणगिरि पर्वत' ही है । 13 9. चिमणाथं 16वीं शताब्दी के मराठी कवि और भ० अजयकीर्ति के शिष्य पं० चिमण ने 'तीर्थवन्दना' नामक ग्रन्थ में 'बड़ग्राम' नामक प्रसिद्ध ग्राम के पश्चिम दिशा में स्थित और कैलाश पर्वत की तरह द्रोणगिरि पर्वत से गुरुदत्त मुनि के सिद्ध होने का उल्लेख कर आचार्य कुन्दकुन्द का अनुकरण किया है। उपर्युक्त विवेच्य साहित्य के विश्लेषण करने के पश्चात् कहा जा सकता है कि—(क) उक्त साहित्य में द्रोणगिरि, द्रोणिमंत, द्रोणिमति, द्रोणीगिरि, तोणिमत, द्रोणी पर्वत, द्रोणीमति और तोणिमतभूधर शब्दों के प्रयोग 'द्रोणगिरि' नामक पर्वत के वाचक के रूप हुए हैं। (ख) द्रोणगिरि से गुरुदत्त आदि मुनिराजों को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसकारण यह सिद्ध तीर्थक्षेत्र के रूप में विश्रुत है । (ग) द्रोणगिरि (पर्वत) की स्थिति के संबंध में दो प्रकार की विचारधारा आई हैं। आचार्य कुन्दकुन्द ने 'द्रोणगिरि' को 'फलहोडी' नामक ग्राम के पश्चिम में बतलाया है। गुणकीर्ति और चिमण पंडित ने कतिपय अंशों में कुन्दकुन्द से सहमति प्रकट की है। चिमण पंडित बड़ग्राम के पश्चिम में 'द्रोणगिरि' को मानते हैं । संभव है 16वीं शताब्दी में 'फलहोडी बड़ग्राम' के रूप में प्रसिद्ध हो गया हो। क्योंकि 'फलहोडी ग्राम' आसपास के 400 ग्रामों से बड़ा सर्वश्रेष्ठ था । आप्टे ने संस्कृत - हिन्दी कोष में 'द्रोण' शब्द का अर्थ 400 ग्रामों का 'प्रधान नग' भी बतलाया है। लेकिन आजकल 'फलहोडी' नामक ग्राम नहीं है। दूसरी बात यह है कि 'फलहोडीवर' ग्राम के बदले चिमड़ पंडित के 'बड़ग्राम' के प्रयोग के देखने से प्रतीत होता है कि छन्द-रचना के कारण 'फलहोडी' शब्द का लोप हो गया और उच्चारण-भेद के कारण शेष 'वरग्राम' बड़ग्राम के रूप में प्रसिद्ध हो गया । -- यह भी सम्भावना की जा सकती है कि कालान्तर में 'फलहोडी ग्राम' उजड़ गया हो और बाद में सेंधपा' (पहाड़ों की निचली भूमि) नामक ग्राम बसाया गया हो और ऐसा होना असम्भव भी नहीं है । दूसरी ओर हरिषेण, प्रभाचन्द्र और ब्र० नेमिदत्त कथाकारों की मान्यता है कि 'द्रोणगिरि पर्वत' लाट देश की चन्द्रपुरी के दक्षिण-पश्चिम में स्थित था । प्राचीन 'लाट 'देश' वर्तमान में 'गुजरात' के नाम से प्रसिद्ध है । लेकिन वहाँ न तो कोई 'द्रोणगिरि' नामक पर्वत है और न ही इस नाम वाला कोई तीर्थक्षेत्र है । 00 70 प्राकृतविद्या�अप्रैल-जून '2000

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