Book Title: Prakrit Vidya 2000 04
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ ऋषि और मुनि में अंतर -शारदा पाठक भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत के बहुतेरे शब्द हिन्दी सहित देश की वर्तमान भाषाओं में भी प्रचलित हुए हैं। उनमें दो शब्द 'ऋषि' और 'मुनि' शामिल हैं। दोनों का इस्तेमाल आमतौर पर संयुक्त रूप से किया जाता है। 'ऋषि-मुनि' बोला और लिखा जाता है। जन-सामान्य इन दोनों शब्दों को समानार्थी समझता है और मानता है कि जो 'ऋषि' है वही 'मुनि' है। दोनों के बीच कोई अंतर नहीं है। लेकिन वस्तुस्थिति इसके ठीक विपरीत है। 'ऋषि' शब्द ऋग्वेद में बार-बार आता है। संहिता की ऋचाओं के रचने वाले भी ये ऋषि ही हैं। उनके विभिन्न घराने और समूह हैं। घराने या आश्रम के संस्थापक के नाम से उसकी परम्परा के सारे 'ऋषि' पुकारे जाते हैं; जैसे भरद्वाज की परम्परा के ऋषि 'भारद्वाज', कश्यप की परम्परा के काश्यप', पराशर की परम्परा के 'पाराशर'। यह परम्परा भारत की लगभग सभी हिन्दू जातियों के गोत्रों के नामों में आज तक सुरक्षित चली आ रही है। एक ही जाति या उपजाति में अलग-अलग ऋषियों के नामों से जुड़े गोत्र मिलते हैं। भारद्वाज गोत्र वाले अपने वंश का आदिपुरुष भरद्वाज को मानते हैं, तो पाराशर गोत्र वाले पराशर को। ऋषि सब पुरुष ही नहीं हैं; महिला ऋषियों की परम्परा भी मिलती है, गार्गी और मैत्रेयी वगैरह इसके उदाहरण हैं। ___ ऋषि विद्वान् व ज्ञानवान् व्यक्ति हैं। उन्हें समाज के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों के पूजनीय वर्ग के रूप में सामाजिक मान्यता प्राप्त है। जनजीवन के हर क्षेत्र पर इन ऋषियों का निर्णायक प्रभाव है। वे आश्रम और गुरुकुल चलाते हैं। नई पीढ़ी को शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। राजा से लेकर सामान्य व्यक्ति तक को हर प्रकार का परामर्श देते हैं। ऋषि राजाओं के गुरु हैं और राजा उनके आदेश का पालन करते हैं व उनकी सलाह के अनुसार चलते हैं। ऋषि समाज के लिए आचरण के नियमों का निर्धारण करते हैं। समाज के भौतिक जीवन के साथ-साथ उसके आध्यात्मिक जीवन के भी वे नियंता हैं। ऋषि लोगों को यज्ञों और कर्मकांड के लिए प्रेरित करते हैं। उनसे यज्ञ करवाते हैं और समाज के हर वर्ग से दान-दक्षिणा के रूप 0084 प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116