Book Title: Prakrit Vidya 2000 04
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ सकते हैं या नहीं। अनेक प्रयोग किये जा रहे हैं, किन्तु इसका समाधान आचार्य यतिवृषभ 700 वर्ष पूर्व तिलोयपण्णत्ति ग्रन्थ में करते हैं कि वहाँ तो अनादिकाल से प्राणी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वे सैनी पञ्चेन्द्रिय जीव हैं । उन समस्त ज्योतिषी - विमानों में देव रहते हैं । उन समस्त ग्रहों में रहनेवाले जीवों की संख्या भी निश्चित है, जो अलौकिक गणितीय आंकड़ों में दर्शाई गई है । संख्या मात्र ही नहीं, उनकी जातियाँ, भेद, वहाँ के नगरों की व्यवस्था, उनके शरीर का वर्णन, ऊँचाई आदि आचार्य यतिवृषभ ने वर्णित की है। ग्रहों पर ही जीव रहते हो ऐसी बात नहीं, अपितु उससे आगे स्वर्गों की व्यवस्था है वहाँ पर भी देव रहते हैं। उनका भी उपर्युक्त प्रकार से वर्णन किया है। इनसे और ऊपर जाते हैं, तो सिद्ध परमात्मा भी अन्तरिक्ष में है । अत: निर्णीत हुआ कि अंतरिक्ष में संसारी और मुक्त दोनों प्रकार के जीव रहते हैं । मुक्त - जीव एक नियत स्थान में सिद्धशिला पर विराजमान हैं। संसारी जीव अर्थात् वहाँ के सभी देव यथावसर गमनागमन करते हैं। क्षेत्रजन्य ऐसी व्यवस्था है कि उन देवों की गति - आगति भी एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित । अतः ग्रहों पर जीवन की अवधारणा को आचार्य यतिवृषभ और अन्यान्य भी दिगम्बर जैनाचार्यों ने पूर्व में ही स्पष्ट कर दिया था । है ध्यान 'ध्यान' शब्द भारत में बहुत प्रचलित है, बहुत प्रसिद्ध है। 'ध्यान' शब्द का अर्थ है 'किसी चीज में एकाग्र हो जाना।' इसका व्यावहारिक जीवन में भी बहुत महत्त्व है, बहुत उपयोग है। ध्यान से सुनो, ध्यान से देखो, ध्यान से पढ़ो, ध्यान से काम करो जैसे वाक्य हम सदैव बोलते रहते हैं । ध्यान कोई सिखाता नहीं है, प्राणी अनादिकाल से इसे जानता है, समझता है और इसका व्यवहार / प्रयोग करता है । यदि ध्यान सिखाये जाते, तो बताइये मनुष्य को आर्त - रौद्र ध्यान किसने सिखाया ? वह एकाग्र होकर किसी का नुकसान करने के लिए, हानि पहुँचाने के लिए चिन्तन करता रहता है। सोचता है ' इसने मुझे हानि पहुँचाई है, मैं भी इसका नुकसान करूँगा।' मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी आर्त - रौद्र ध्यान करते हैं। बगुला पानी में एक पैर से खड़ा होकर इसीप्रकार का ध्यान करता रहता है। किसी प्रकार की चिन्ता, भय से सम्बन्धित चिन्तन करना 'आर्तध्यान' है और किसी को मारने, झूठ बोलने, चोरी करने से सम्बन्धित चिन्तन 'रौद्रध्यान', है । बगुले को रौद्रध्यान होता रहता से हैं । 888 है । उसे किसने सिखाया है यह? उसमें इसप्रकार के संस्कार अनादिकाल - ( आचार्य श्री विद्यानन्द मुनिराज ) प्राकृतविद्या + अप्रैल-जून 2000 -

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116