Book Title: Prakrit Vidya 2000 04
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 111
________________ लिखित 'पञ्चाध्यायी में प्रतिपादित जैनदर्शन' नामक शोध-प्रबन्ध पर 'उत्तरप्रदेश संस्कृत संस्थान' ने वर्ष 1998 का पाँच हजार रुपये का 'श्रमण पुरस्कार' प्रदान कर श्रीमती डॉ० जैन का सम्मान किया है । -अर्चना अग्रवाल, दुर्गाकुंड रोड, वाराणसी ** पत्राचार पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्रारम्भ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा 'पत्राचार अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम' का नवां सत्र 1 जनवरी, 2001 से आरम्भ किया जा रहा है। 'पत्राचार जैनधर्म दर्शन एवं संस्कृति सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम 2001 में प्रवेश' का सत्र 1 जनवरी, 2001 से 31 दिसम्बर, 2001 तक रहेगा । -डॉ० कमलचन्द सोगाणी, श्रीमहावीरजी, (राज० ) ** 'नियम सल्लेखना' के अंतर्गत संस्तरारोहण - विधि के साथ समाधिमरण सोलापुर स्थित श्राविका संस्थाननगर की संचालिका, विदुषी पद्मश्री ब्र० पंडिता सुमतिबाई शहा की द्वादशवर्षीय नियम- संल्लेखना के अंतर्गत संस्तरारोहण - विधि से रविवार दिनांक 11.6.2000 दिन सुबह 7.53 बजे विधिपूर्वक संपन्न हुई । इस विधि में पूर्व 3.6.2000 के दिन श्री भक्तामर विधान पं० महावीर शास्त्री एवं ब्र० रेवतीबेन दोशी के मार्गदर्शन में तथा आश्रमवासी महिलाओं की उपस्थिति में संपन्न हुआ। लगभग एक साल से वृद्धावस्थावश बिस्तर में अस्वस्थ होने पर भी अचानक उन्होंने जागृत अवस्था में दिशाबंधन, परिग्रह एवं वाहन - त्याग, सभी प्रकार के अनाजों का त्याग स्वयं किया और नारियल जल लेने की छूट रखी। ये नियम क्षु० जयश्री माताजी की उपस्थिति में उन्होंने धारण किये । कायक्षीणता - प्रतिदिन बढ़ती गयी; परंतु अपूर्व शांति एवं जागृतता सभी के लिए आश्चर्य का विषय बनी रही । अखंड णमोकार मंत्रोच्चार, स्तवनपाठ, भक्तिपाठ, इत्यादि के पाठ से वातावरण मंगलमय एवं पवित्र बना रहा और सुमतिबेनजी शहा का समाधिमरण ता० 6.7.2000 को रात्रि 8.10 बजे हो गया । प्राकृतभाषा के लिए समर्पित व्यक्तित्व का वियोग प्राकृतभाषा एवं जैनदर्शन के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री शांतिलाल वनमाली शेठ का दिनांक 11 जुलाई 2000 ई० को सांयकाल 7.00 बजे धर्मध्यानपूर्वकं देहावसान हो गया । आप जीवनभर प्राकृतभाषा एवं जैनदर्शन के प्रचार-प्रसार के लिए राष्ट्रीय - अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्पित रहे । प्राकृतविद्या परिवार की ओर से दिवंगत आत्माओं को बोधिलाभ एवं सुगतिगमन की कामना के साथ श्रद्धासुमन समर्पित हैं । संपादक ** प्राकृतविद्या के स्वत्वाधिकारी एवं प्रकाशक श्री सुरेशचन्द्र जैन, मंत्री, श्री कुन्दकुन्द भारती, 18-बी, स्पेशल इन्स्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली- 110067 द्वारा प्रकाशित; एवं मुद्रक श्री महेन्द्र कुमार जैन द्वारा, पृथा ऑफसेट्स प्रा० लि०, नई दिल्ली- 110028 पर मुद्रित । भारत सरकार पंजीयन संख्या 48869/89 प्राकृतविद्या + अप्रैल-जून 2000 ☐☐ 109

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