Book Title: Prakrit Vidya 2000 04
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 38
________________ 'णमोकार मंत्र' कीजाप-संरख्या और पंच-तंत्री वीणा -जयचन्द्र शर्मा इस महामंत्र के प्रत्येक अक्षर में दैविक शक्ति है। अक्षर-शक्ति से समस्त संसार का व्यापार चलता है। अक्षर चाहे किसी भी भाषा के हों, वे शक्तिविहीन नहीं हैं। अक्षरों का जब उच्चारण करते हैं, तब एक प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। उस ध्वनि में कोमलता, मधुरता एवं कठोरता के भाव पाये जाते हैं। मंत्र के जाप में कोमलता एवं मधुरता के भाव होने पर ही उसका प्रभाव होता है। मुख से मधुर ध्वनि के साथ मंत्र को प्रगट किया और अन्तरावस्था में कठोरता के भाव भरे हैं, ऐसी भावना को समाप्त करने के लक्ष्य से ऋषियों, मनीषियों ने मंत्रों की जाप-संख्या अधिकाधिक अर्थात् लाखों एवं करोड़ों तक का उल्लेख किया है। अक्षरांक-शक्ति का उपयोग चेतन एवं अचेतन पदार्थों के प्रभाव को जानने के लिये किया जाता है। योगी एवं वैज्ञानिक अपने विषयों की गहराई तक पहुँचने के लिये अक्षरांक-शक्ति का सहारा लेते हैं। उन ध्वनियों में रस है, रंग है और परमात्मा से साक्षात्कार कराने की अभूतपूर्व शक्ति है। इस शक्ति को प्राप्त करने की दृष्टि से प्राचीन ऋषि-मुनियों ने मंत्र, यंत्र एवं तंत्र विद्याओं को आधार माना है। मंत्र-विद्या' सत्-गुण प्रधान है। अत: मंत्र के जाप से आत्मा में कोमलता के भाव उत्पन्न होते हैं, जो भगवान् को भी प्रिय हैं। महामंत्र का जाप कितनी संख्या में किया जाये, उसका फल उक्त संख्याओं की शक्ति अनुसार जापकर्ता को होगा। किस लाभ के लिये कितने जाप किये जायें, इस संबंध में जैन साहित्य एवं विद्वानों के लेखों का अध्ययन किया जाना अपेक्षित है। जाप की संख्याओं की जानकारी के संबंध में दो प्रकार के विधि-विधान का आधार लिया जाये, तो वैज्ञानिक दृष्टि से अप्रमाणिक नहीं माने जा सकते। प्रथम प्रकार 'गुणोत्तर-प्रणाली' एवं द्वितीय प्रकार है 'अक्षरांक-प्रणाली।' गुणोत्तर-प्रणाली - महामंत्र के प्रत्येक पद के अक्षरों का गुणा करें। जैसे णमो अरिहंताणं', इस पद में सात अक्षर हैं। इनकी सात संख्याओं का गुणनफल निकालें 1x2x3x4x5x6x7%D5040 0036 प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000

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