Book Title: Prakrit Vidya 2000 04
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 62
________________ महाकवि स्वयंभूकृत 'पउमचरिउ' के 'विद्याधर काण्ड' में विद्याधरों का देश भारत -श्रीमती स्नेहलता जैन समाज और संस्कृति का पारस्परिक अटूट सम्बन्ध है । मनुष्य जब अपनी संस्कृति से प्रेरित होकर समाज की उन्नति के लिए कोई कार्य करता है, तो उस कार्य से उसकी सभ्यता के दर्शन होते हैं । इसी तरह संस्कृति और साहित्य का भी अटूट सम्बन्ध है । समाज में रहते हुए साहित्यकार पर भी अपनी संस्कृति का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है, जिसकी अभिव्यक्ति अनायास उसके साहित्य में हो जाती है । वही साहित्यकार अपने साहित्य के माध्यम से चिरस्थायी कीर्ति प्राप्त कर सकता है, जो अपने साहित्य को बहुजन हिताय बनाने की चिन्ता से युक्त हुआ सम्पूर्ण सांस्कृतिक परम्परा पर विचार करके सम्पूर्ण समाज को उसके वास्तविक रूप के दर्शन कराने तथा सही मार्ग दिखलाने का दायित्व भी ग्रहण करता है । कवि स्वयंभू भी साहित्यकार के दायित्व का निर्वाह करने में पूर्ण समर्थ रहे । यही कारण है कि भारतीय संस्कृति और साहित्य के जाने माने समीक्षक पं० राहुल सांकृत्यायन ने कहा है— “हमारे इसी युग में नहीं, हिन्दी कविता के पाँचों युगों में स्वयम्भू सबसे बड़े कवि थे । वे भारत के एक दर्जन अमर कवियों में से एक थे।" महाकवि स्वयंभू ने अपने 'पउमचरिउ ' के 'विद्याधर काण्ड' में वैदिक और श्रमण - परम्परा के मेल से निर्मित भारतीय सभ्यता व संस्कृति का चित्रण तो किया ही है, साथ ही विभिन्न घटनाओं के माध्यम से इस तथ्य को भी उजागर किया है कि “वैदिक-परम्परा के विभिन्न वर्गों में विभाजित अनुयायियों में परस्पर कितना ही वैमनस्य रहा हो, किन्तु श्रमण-परम्परा के अनुयायियों के साथ इनके मधुर सम्बन्ध थे; साथ ही श्रमण- परम्परा के लोगों द्वारा भी इनके बीच कभी हस्तक्षेप नहीं किया गया । " यह अकेला 'विद्याधर काण्ड' ही अपने आप में इतना निरपेक्ष है कि इसका पाठक स्वयंभू के समय तक अर्थात् 8वीं शती तक अनवरतरूप से प्रवाहित भारतीय - संस्कृति से अवगत तो होता ही है; साथ ही अपने जीवन को सार्थक बनाने का सामर्थ्य भी पाता है । इस 'विद्याधर काण्ड' में कुल 20 सन्धियाँ है, जिनमें प्रारम्भ की 4 सन्धियाँ 'इक्ष्वाकु प्राकृतविद्या + अप्रैल-जून '2000 ☐☐ 60

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