Book Title: Prakrit Vidya 2000 04
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 47
________________ 2600वी वीर-जयंती -अनूपचन्द न्यायतीर्थ 2600वीं जन्म-जयंती, महावीर भगवान की। लायी है सन्देश 'अनूपम', ज्योति जलाओ ज्ञान की ।। 1।। दूर करो अज्ञान-अन्धेरा, रूढ़ि-अंधविश्वास को । सत्य-अहिंसा शंखनाद से, गुंजा दो आकाश को ।। 2 ।। क्रोध मान माया को छोड़ो, लोभ पाप की खान है। सात्त्विकता जीवन में लाओ, इस ही में उत्थान है।। 3 ।। तोड़ो मत जोड़ो ही जोड़ो, यह सच्चा अभियान है। प्रेमभाव से रहना सीखो, यही राष्ट्र की शान है।। 4।। ऊँच-नीच का भेद नहीं हो, सर्वजीव-समभाव हो । सब धर्मों का आदर करना, मानवमात्र स्वभाव हो ।। 5।। भौतिकता की चकाचौंध में, नहीं भटकना पंथ से । जीवन सफल बनाओ अपना, पढ़-पढ़ सच्चे ग्रंथ से ।। 6।। दीन दुःखी की सेवा करना, सबसे पहिला काम हो । न्यायमार्ग से कभी न डिगना, कैसा भी अंजाम हो ।। 7।। स्वाभिमान से जीवन जीओ, सादा उच्च विचार हो । ऐसी संगति सदा बैठिये, जिसमें नहीं विकार हो ।। 8 ।। सद्भावना ऐसी मानो, सर्वसुखी संसार हो । शिथिलाचार पनप नहिं पावे, कहीं न भ्रष्टाचार हो ।। 9।। रहो सदा कर्त्तव्यपरायण, विज्ञ विवेकी शूर हो।। धर्मनीति पर चलो निरंतर, कष्ट-आपदा दूर हो ।। 10।। मार्ग-प्रदर्शक बने विश्व का, सब देशों का ताज हो। करुणा, दया और अनुकम्पा-पूर्ण समग्र समाज हो ।। 11।। भारतीय संस्कृति में पूरा, रचा-बसा इन्सान हो। सहृदयी सज्जन गुणग्राही, अति उदार गुणवान हो ।। 12 ।। प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000 00 45

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