Book Title: Prakrit Vidya 2000 04
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ दोनों ही प्रयोग होते हैं। परन्तु विचारपूर्वक किस तरह से किसप्रकार की भाषा का प्रयोग करना चाहिए - यह भी एक महत्त्वपूर्ण भाषा के लिए अनिवार्य है। आगमों में प्रत्येक के अलग-अलग पद दिये गये हैं। यदि वह 'एगे आया' ऐसा कथन करता है, तो 'एकवचन' की अपेक्षा एक आत्मा का बोध होता है। यदि दुविहा दव्वा पण्णत्ता' —ऐसा कथन करता है, तो द्रव्य के दो प्रकार समझ में आते हैं। आगमों के ही स्थानांग, समवायांग आदि सूत्रों में भाषा पर कई प्रकार से विचार किया गया है। जिसमें शब्द के आकार एवं प्रकार से दो-दो विशेषतायें दी गई हैं : भासासद्दे चेव, णोभासासद्दे चेव। भाषा-शब्द और नोभाषा-शब्द । भासासद्द – अक्षर-संबद्ध (वर्णणात्मक) और नोअक्षर-संबद्ध । णोभासासद्य - आतोद्य-वादित्य और नो-आतोद्य-शब्द । आउज्जसद्ये - तत और वितत । तत - घन और शुषिर। वितत - घर और शुषिर। णोआउज्जसद्य - भूषण शब्द और नोभूषण शब्द । णोभूसणसद्य - ताल शब्द और लत्तिका शब्द । अर्थात् जीव के वचनयोग से प्रगट होने वाला शब्द 'भाषा शब्द' है। इसके प्रहार, संघात से भी शब्द की उत्पत्ति होती है। घड़ी की सुईयाँ चलने से या मशीन के चलने से भी शब्द की उत्पत्ति होती है। और कुछ ऐसे शब्द भी होते हैं, जो भेद को प्रगट करते हैं। भेद से शब्द की उत्पत्ति तड़-तड़, चट-चट आदि के रूप में भी होती है। भाषा-वचन-व्यवहार जैसाकि ऊपर प्रयोग में भाषा-शब्द, नोभाषा-शब्द, अक्षर-संबद्ध, नोअक्षर-संबद्ध आदि का कथन किया गया है, वह भाषा-भेद का प्रकार है। यदि भाषा को वचन के रूप में प्रयुक्त करते हैं, तो समस्त भाषाओं में मूलत: एकवचन और बहुवचन के प्रयोग की सूचना सामने आती है। परन्तु संस्कृत के वचन की दृष्टि से इस पर विचार करते हैं, तो एकवचन, द्विवचन और बहुवचन ये तीन प्रकार सामने आते हैं। शौरसेनी, अर्द्धमागधी, महाराष्ट्री आदि प्राकृतों, अंग्रेजी-विधानों एवं अन्य सभी प्रकार के हिन्दी भाषा-विभाषा आदि में एकवचन और बहुवचन के प्रयोग होते हैं। ___ वचन का अपना एक नियम है, यदि वह स्त्रीवाची है, तो स्त्रीवचन; पुरुषवाची है, तो पुरुषवचन और नपुंसकवाची है, तो नपुंसकवचन भी है। इसमें क्षेत्रीय भाषा-दृष्टिकोण नहीं होता; अपितु स्त्री-पुरुष और नपुंसक के प्रयोग से उसके सूत्र तद्प कहे जाते हैं। यदि वे ही वचन अतीत, प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) और अनागत दृष्टि से प्रयोग किये गये हैं; तो अतीत-वचन, प्रत्युत्पन्न-वचन और अनागत-वचन कहलाते हैं। प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000 0057

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116