Book Title: Prakrit Vidya 2000 04
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 57
________________ भाषा का स्वरूप एवं विश्लेषण - डॉ० (श्रीमती) माया जैन 'भाषा' शब्दगत उद्गार है । यह मानवीय वचन द्वारा निःसृत ऐसा अर्थयुक्त एवं शब्दगत भाव है, जिसमें सब कुछ समाहित है । जिसमें वाणी, वाक्, वचन आदि यन्त्रसाधना है, वही भीतरी आत्मसंकल्प का व्यापार है । जो मूलत: वाक्केन्द्रित चिन्तन है, जिसका कोई न कोई अभिप्राय भी होता है । कहने का अभिप्राय है कि भाषा अर्थोमय एवं शब्दबद्ध उद्गार का नाम है। 'शब्द' भाषिक संकल्पना है, 'भाषा' चिन्तन की दृष्टि शब्द सार्वत्रिक व्याकरणिक इकाई भी है, जो वाक्य, रूपिम और स्वनिम को महत्त्व देता है। जिस अर्थ में शब्द भाषा संरचनात्मक इकाई को लेकर चलता है, वह उसी रूप में स्थित नहीं हो पाता है; क्योंकि भाषा का सम्पूर्ण विश्लेषण वर्ण, पद और वाक्य रूप में भी होता है। उसमें क्षेत्रीयता, प्रान्तीयता, आंचलिकता आदि का प्रभाव भी पड़ता है। इसी से भाषा के विविध रूप सामने आते हैं, उन्हीं से साहित्य को गति प्राप्त होती है । 'भाषा' शब्द पर विचार भाषा में 'शब्द' सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संकल्पना है । भाषा की मौलिक इकाई 'वाक्य' है, उपवाक्य है, पदबंध है, मूलप्रकृति, प्रत्यय आदि भी है; परन्तु जब शब्द को महत्त्व दिया जाता है, उस समय वह भाषा - विवरण शब्दानुशासन को प्राप्त हो जाता है । शब्दानुशासन व्याकरणिक पद्धति है । इसका अपना स्वकीय तत्त्व-दर्शन है और यह भाषा की भी स्वतन्त्र एक इकाई है, जो वाक्य के रूप में रूपविज्ञान, शब्द के रूप में शब्दविज्ञान और अर्थ के रूप में अर्थविज्ञान को अभिव्यक्त करता है । जब 'शब्द' और 'अर्थ' की सहभागिता हो जाती है, तब वही साहित्यिक रूप ग्रहण करता है, उसमें काव्यशास्त्रीय की गम्भीरता भी समाहित हो जाती है । 1 I भाषा मनुष्य के विचारों का प्रयोग है । जैसे ही मनुष्य शब्दों के प्रयोग को गतिमान करता है, वैसे ही अर्थों को समझकर मन को बोलने की इच्छा से प्रेरित करता है । अर्थात् जो कुछ भी प्रयोग शब्द के रूप में मन की शक्ति वायु को प्रेरित करती है । उस समय 'शब्द वाक्' की उत्पत्ति होती है, यही शब्द वाक् 'भाषा' है। मनुष्य की वाणी जैसे-जैसे प्राकृतविद्या�अप्रैल-जून '2000 O 55

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