Book Title: Pragna ki Parikrama
Author(s): Kishanlalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 129
________________ १०७ स्वभाव परिवर्तन के प्रयोग यह स्पर्धा ही संघर्ष, ईर्ष्या, विद्वेष आदि वृत्तियों की जननी है, जिसका फल है तनाव । तनाव से ही मानव जाति के लिए विकटतम परिस्थिति पैदा हो जाती है। व्यक्ति को अपना ही असंतुलन विनाश के कगार की ओर ले जा रहा है। समस्याओं के समाधान के लिए निकला हुआ व्यक्ति प्रतिदिन और अधिक समस्याओं से घिरता जा रहा है। आवेग और उप-आवेग की भीषणतम अग्नि से समाज के श्रेष्ठ गुण भस्म होते जा रहे हैं। प्रबुद्ध वर्ग हिंसा, लूट, तोड़फोड़, बलात्कार आदि की प्रतिदिन घटित होने वाली घटनाओं से चिन्तित और आशंकित है। __ भय और शंका से मानव ने जो कुछ शस्त्रास्त्र संग्रह और उत्पादन किया है, वह किसी आकस्मिक भूल अथवा दुर्घटना से प्रभावित होकर कितना भीषण विनाशकारी हो सकता है, इसकी कल्पना ही भयावह है। तब इस धरती पर न घास मिलेगी, न पेड़-पौधे। प्रथम तो मनुष्य जाति का बचना ही बहुत मुश्किल है। फिर भी कोई संयोग से बच भी जायेगा तो बड़ा कुरूप, भद्दा और कुत्सित होगा। वह मानव कहला कर भी जीवित लाश के समान पृथ्वी पर चलेगा। अमेरिकन सुरक्षा संस्थान की सुरक्षा योजना की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि अणु आयुधों से सुरक्षा एवं मार करने के लिए ऐसे सुरक्षित नगरों का निर्माण हुआ है जहां से अणु आयुधों का संचालन होता है। वहां पर सुरक्षा की हिदायतों के साथ एक पिस्तोल भी रखी रहती है वह इसलिए कि कोई अधिकारी उन्माद अथवा प्रमाद वश कभी कुछ करने को उद्यत हो तो पिस्तोल से उसकी हत्या कर दी जाए, अधिकारी के लिए तो उन्होंने व्यवस्था कर दी, परन्तु राष्ट्राध्यक्ष के सिर पर उन्माद सवार हो जाए, तो क्या होगा ? यह प्रश्न अनुत्तरित है। अतः मानव को अपने आवेगों पर संयम करना सीखना ही होगा, अन्यथा उसे शान्ति और आनन्द नहीं मिल सकता। क्रोध के आवेग से आज व्यक्ति, परिवार और समाज से विखंडित हो रहा है। क्रोध तात्कालिक आवेग है, परन्तु बार-बार आवृत्तियों से उसकी भी आदत बनने लगती है। क्रोध की आदत से व्यक्ति पुनः पुनः उत्तेजित होता है, जिसका परिणाम स्वयं एवं परिवार पर फैलकर समाज में व्याप्त होने लगता है। समाज में राष्ट्र और अन्त में राष्ट्र से विश्व सबको यह भयंकर ज्वाला अपनी चपेट में ले लेती है। क्रोध बुरा है, यह निर्विवाद हैं, परन्तु क्या किसी का ध्यान उसके शमन की विधि और प्रक्रिया पर भी गया है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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