Book Title: Pragna ki Parikrama
Author(s): Kishanlalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 175
________________ २० जप, तप और ध्यान के चमत्कार लम्बा कद, सुडौल शरीर, आंखों से झांकती हुई सरलता, वाणी में पंजाबी मिश्रित हिन्दी का सरल उच्चारण, गुरुश्रद्धा की साकार प्रतिमा रामामण्डी की एक तपस्विनी श्राविका कलावती की अद्भुत घटनाओं ने कुछ लिखने को प्रेरित किया। मुझे उसके सरलतापूर्ण उत्तरों एवं आसपास के वातावरण से लगा कि उसमें अपने आपको पुरस्सर करने की भावना नहीं अपितु नमस्कार मंत्र के ध्यान जप, एवं तपस्या ने यह सब कुछ घटित किया है। उसने कुछ प्रश्नों के उत्तर दिये, वे इस प्रकार है : प्रश्न - तुम्हारे बचपन के संस्कार क्या थे, जैन धर्म के प्रति तुम्हारा झुकाव कैसे हुआ ? उत्तर - "बचपन से मैं वैष्णव संस्कारों में पली थी। दूसरों की देखा-देखी मंदिर में जाना, पीपल को पानी सींचना आदि कार्य करती थी। विवाहोपरान्त उसी प्रकार गांव के हुनमान मंदिर में जाती और पीपल के पेड़ को सींचती। पीपल पर आई चींटियों को पानी से मरते देखकर मेरे मन में करुणा का स्रोत उमड़ता। मन ही मन विचार करती कि–'मैं अपना तो कल्याण चाहती हूं, किन्तु इससे अन्य जीवों को कितनी पीड़ा होती है। धर्म और तत्त्व के संबंध में मुझे कुछ और अधिक जानकारी उस समय तक नहीं थी और न ही जैन धर्म के संबंध में मुझे कोई जानकारी थी। ___“संयोगवश १६४६ में आचार्य श्री तुलसी के शिष्यों का चातुर्मास रामामंडी में हुआ, तब से मैं जैन धर्म के प्रति आकर्षित हुई। उसी चातुर्मास में मैने अपने आराध्य गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी से साक्षात्कार किया। मेरी अन्तरात्मा को लगा कि मैंने सद्गुरु को पा लिया है।" __ "उसी चातुर्मास में मैंने सत्संग से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त की। तेरापंथ संगठन एवं उसकी परम्पराओं से मैं बहुत प्रभावित हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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