Book Title: Pragna ki Parikrama
Author(s): Kishanlalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 165
________________ १४३ संस्कार प्रवृत्ति या संस्कार मुक्ति व्यक्ति के लिए सम्यक् न हो, परिवार, समाज, राष्ट्र के अनुकूल न हों, उन्हें रूपान्तरित कैसे किए जाएं ? संस्कारों की मुक्ति अथवा रूपान्तरण के लिए जो संस्कार हैं, उनका विश्लेषण करना होता है जिससे उनके यथार्थ का बोध हो जाए। यथार्थ बोध के पश्चात् संस्कारों का निरसन सरल हो जाता __ प्रेक्षा–साधना का मूल सूत्र ही यही है-देखो ! देखना ही रूपान्तरण की पहली प्रक्रिया है। किसी भी संस्कार, आदत, स्वभाव को बदलने का प्रेक्षा का तरीका सरल और कारगर है। उसमें प्रियता-अप्रियता के बिना केवल वर्तमान में देखने, अनुभव करने की जो विधि है वह संस्कार प्रमुक्ति का प्रबलतम साधन है। संस्कार निर्माण नितान्त वैयक्तिक है। व्यक्ति चिन्तनशील प्राणी है, उसे अपने विकास, निर्माण और प्रमोक्षक का अधिकार है। उसके संस्कार निर्माण के लिए जो व्यक्ति, संस्थाएं, राष्ट्र आतुर हैं, उसमें सूक्ष्मता से देखने में स्वयं की सत्ता पकड़ एवं शोषण का अंश छुपा रहता है। उसमें निहीत अपना स्वार्थ मुख्य रहता है। परमार्थ का तो केवल पर्दा लगा रहता है जिससे उसके शोषण के तरीकों को लोग समझ न सकें। यदि शुद्ध रूप से व्यक्ति के विकास के लिए ही कोई करुणा से प्रेरित है तो वह मात्र उसे प्रेम से मार्ग-दर्शन ही करेगा। उसे अन्य तरीकों से बाध्य करने की कोशिश नहीं करेगा। ०००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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