Book Title: Pragna ki Parikrama
Author(s): Kishanlalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 168
________________ १४६ प्रज्ञा की परिक्रमा सम्मान, शीर्षस्थान उनको ही मिलता है जो सत्ता या धन में अग्रणी हैं। राष्ट्र बौद्धिक जगत् सद्-तत्त्वों का सम्मान व संरक्षण करना नहीं सीखेगा, मूल्यांकन बदल नहीं सकता। मूल्यांकन बदले बिना संकल्प दृढ़तर हो जाए, यह मात्र कल्पना ही होगी। संकल्प की दृढता के बिना किसी भी बुराई का अन्त कैसे हो सकता है। संकल्प की दृढता वैयक्तिक होती है, किन्तु उसका पार्श्व आलोकित हुए बिना रह नहीं सकता। जब ऐसे सदाचारी व्यक्तियों की विशाल सेना गलत तत्त्वों के साथ असहयोग करेगी, तभी भ्रष्टाचार का भूत भागता हुआ नजर आएगा। ०००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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