Book Title: Pragna ki Parikrama
Author(s): Kishanlalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 153
________________ १३१ स्वतन्त्रता के बदलते मूल्य उच्छृखलता फैलती है। व्यक्ति की चेतना इस तरह स्वानुशासित बनें जिसमें दूसरे का नियंत्रण नहीं के बराबर हो। स्वानुशासन के लिए आत्म-निरीक्षण आवश्यक है जिससे व्यक्ति अपने गुण-अवगुण की पहचान कर सके। गुण-अवगुण की पहचान का सरल माध्यम ध्यान है। ध्यान स्व के साक्षात् की प्रक्रिया है। उससे चेतना की निर्मलता बढ़ती है, व्यक्ति स्वतः आत्म-संयम की ओर प्रेरित होता है। क्या स्वतंत्रता शोषण का नया नाम है ? स्वतंत्रता की आवाज इस सदी से जिस रूप में उठी हर वर्ग, समाज और राष्ट्र स्वतंत्र होने को उत्सुक हो रहे हैं। स्वतंत्रता की स्थिति का जायजा लेने के बाद विश्व के स्वतंत्र देशों की घटनाएं और स्थितियां उभर कर सामने आती हैं। तब लगता है कि स्वतंत्रता कि परिकल्पना करने वाले व्यक्तियों ने जब सोचा कि हम स्वतंत्र होगें, मन चाहा करेंगे लेकिन आज जो स्थिति है वह परतंत्रता से भी अधिक भयावह बनती जा रही है। पर शासन के विरुद्ध आवाज उठायी जा सकती थी। अपना ही शासन हो तब क्या किया जाए? शासन सूत्र संभालने वाले एवं उसकी व्यवस्था करने वाले अपने ही लोगों का शोषण किस तरह कर रहे हैं ? इसमें न राष्ट्र का हित है और न ही व्यक्ति का। स्वतंत्रता की वर्षगांठ पर एक बार पुनः चिंतन की अपेक्षा है, क्या स्वतंत्रता का उपयोग व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के विकास में किया जा सकता है ? या स्वयं के पोषण के लिए। जब तक स्वतंत्रता का उपयोग पर शोषण के लिए होता रहेगा तब तक यह प्रश्नचिन्ह बना ही रहेगा कि क्या स्वतंत्रता शोषण का नया नाम तो नहीं हो गया ? __ स्वतंत्रता जैसी श्रेष्ठ स्थिति व्यक्ति के लिए स्वप्न में भी नहीं हो सकती। व्यक्ति स्वतंत्रता सापेक्ष सत्य है, पूर्णता की घटना शरीर रहते चैतन्य में घटित नहीं हो सकती। क्योंकि स्वतंत्रता अर्थात् स्वायत्तता की भी सीमाएं हैं। सीमा चाहे वह देश, क्षेत्र, काल सापेक्ष हो उसे व्यक्ति को स्वीकारना ही होता है। जहां पर स्थितियों की सापेक्षता हुई स्वतंत्रता की भी सीमा बन जाती है। स्वतंत्रता व्यक्ति के लिए प्रथम और अन्तिम स्थिति है। स्वतंत्रता प्रारम्भ में साधन है अन्त में सिद्धि। व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता का मूल्य सर्वोपरि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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