Book Title: Pragna ki Parikrama
Author(s): Kishanlalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 158
________________ १३६ प्रज्ञा की परिक्रमा सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि विविध रूप में व्यक्त होती है। मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपनी इच्छा की पूर्ण करने के लिए सत्ता को विविध रूपों से प्रयोग करता है। जिनमें शारीरिक, वाचिक और मानसिक तीन प्रमुख हैं। शरीर-बल ही प्राणी का प्रमुख बल होता है-प्रत्येक प्राणी अपनी इच्छा को मनवाने के लिए शरीर की शक्ति का उपयोग करता है। आदिवासी मनुष्य आज भी अपने शरीर के सामर्थ्य से अपनी इच्छा पूर्ण करने की कोशिश करता भाषा का विकास मनुष्य जाति ने किया। अपनी अनुभूति और इच्छा की अभिव्यक्ति के लिए भाषा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भाषा ने मनुष्य जाति के ज्ञान-विज्ञान को सुरक्षित रख पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया है। भाषा के साथ ही मन का प्रश्न जुड़ा हुआ है। चिन्तन, स्मृति और कल्पना के रूप से मन त्रिमूर्ति है। चिन्तन से नये ज्ञान के द्वारा उद्घाटित होते हैं। स्मृति से अतीत के ज्ञान के साथ सम्बन्ध बना रहता है। सत, असत् कार्य के करने और न करने का निर्णय स्मृति के सहारे मन करता है। कल्पना मन की भविष्य की उड़ानें हैं। जिससे वह भविष्य की योजनाओं का निर्माण करता है। विचार और मन शरीर के तंत्र को मजबूत करने के लिए सदा तत्पर रहते हैं। शरीर, विचार और मन सत्ता के सुयोग से अपने शासन का संचालन करते हैं। इस तरह शासन सत्ता का सान्निध्य पाकर समाज में शोषण का नया दौर प्रारम्भ करता है। शासन के आगे अनु शब्द संयोजित होकर अनुशासन बना है। अनुशासन शासन का ही अनुज है। शासन में जहां सत्ता शक्ति के द्वारा अपने तंत्र को संचालित करती है, वहां अनुशासन में जनता उस आदेश को स्वयं स्वीकृत करती है। स्वयं के द्वारा स्वीकृत मर्यादा के अनुसार जीवन निर्वाह करना अनुशासन है । अनुशासन शब्द में अनु+शासन है, जिसका अर्थ (तात्पर्य) शासन के अनुरूप (पीछे) चलना। शासन एक सामूहिक स्वीकृत व्यवस्था है जिसे व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और स्वयं का हित समझ पालन करता है। अनुशासन शब्द आज रूढ़-सा बना हुआ है। जिसकी ध्वनि से जो अर्थ प्रस्फुटित हो रहा है, वह है दूसरों द्वारा अनुशासित होना। अनुशासन का मूल अर्थ है शिक्षा । शिक्षा में मात्र शिष्य को शिक्षण का संकेत है। शिष्य को आचार्य अनुशासित करते हैं, वह केवल इच्छाकार है। इच्छा से प्रेरित शिष्य स्वयं आचार्य के अनुशासन का पालन करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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