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[८] किया और बहिनो की तिलक पूजा मंडल की स्थापना की। वि. सं. १९८६ का चौमासा राजगढ़ में आपने गुरुदेव के साथ किया और वहां पर दूसरी शिष्या हुई उनका नाम संयमश्रीजी रखा । वि. सं. १९८७ का चौमासा सुरत आपने गुरुदेव के साथ किया। परम पूज्य गच्छाधिपति माणिक्यसागर सुरीश्वरजी के पास उतराध्यान सूत्र के योगवहन किये । संवत १६८८ का चौमासा अहमदाबाद में किया वहां परम पूज्य आगमोद्धारक का चौमासा था। उनकी निश्रा में प्राचारांग का योगवहन किया। आपने पू. गुरुबेन हेमश्रीजी म. सा. प. रंजनश्रीजी म. आदि ठाणा १३ के साथ चौमासा बाद सिद्धगिरीराज पधारे ।
आनन्द पूर्वक नवाणु यात्रा की, आस पास की पंचतीर्थी, भावनगर, घोघा, तलाजा आदि कि यात्रा करते हुए चैत्री पूनम सिद्धगिरी कि की, वहां से विहार करके खंभात, झगडीया तीर्थ की यात्रा करते हुये सुरत अपने गुरुदेव कि निश्रा में पहोंचे । सं० १९८६ का चौमासा सुरत में गुरु महाराज के पास किया और गरुम.के पास दशवकालिक सूत्र बांचा व अर्थ किया । चौमसे में सेठानी सुन्दरबाई विगैरा इन्दौर से
आये और मालवा तरफ विहार करने की विनंती करी । इससे गुरु महाराज कि आज्ञा लेकर चौमासे बाद मालवा तरफ विहार किया । डभोई, छाणी, विगैरा कि यात्रा करते