Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala

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Page 14
________________ [७] करते हुए मेरे को दीक्षा देकर अपनी शिष्या बनाकर कृतार्थ करो। आप श्रीजी ने विनंती स्वीकार करके अपनी शिष्या रत्न परम पू. हेमश्रीजी म. तथा प्रशिष्या तपस्वी तीर्थश्री जी म. तथा बाल ब्रह्मचारी बाल दीक्षित पूज्य रंजनश्रीजी म. आदि ठाणा चार इन्दौर पधारे और फागुन शुदि पंचमी गुरुवार सं० १९८४ में खूब धूमधाम से अट्ठाई महोत्सव करवाकर पू. पन्यास विजयसागरजी म. सा. के अध्यक्षता में परम पू १००८ श्री तिलकश्रीजी म. सा. के शिष्या हुए । चतुर्विध संघ के समक्ष में आप श्रीजी का संसारी नाम मिश्रीबाई का परिवर्तन करके पूज्य गुरुदेव का नाम मनोहरश्रीजी प्रकाशित किया। आप श्रीजी के साथ में श्रीमति मेंदीबाई जो हमेशा साथ में धर्म ध्यान करते थे उन्होंने भी उसी दिन दीक्षा ली।आप श्रीजी के पहले शिष्या हुए नाम गुणश्रीजी रखा और दोनों गुरु :शिष्या को पन्यासजी म. के पास दशवकालिक योग में प्रवेश कराये । यहां इन्दौर में वैशाख शु. ११ सं० १९८५ में बडी दीक्षा गुरु शिष्या की हुई। इसके बाद आपने गुरुदेव के साथ उज्जैन, मक्सी की यात्रा करते हुये महिदपुर पधारे । गुरुदेव के चातुमास वि. सं. १९८५ का चौमासा महिदपुर में आपने गुरुदेव के साथ किया, वहाँ पर संस्कृत का अभ्यास चालु

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