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(४०)
का० नैवेद्य० ॥ २ ॥ पापम पूरी रेवमीरे, खुरमां खाजां सारः फेणी जलेबी खीरथीरे, पूजा करो मनोहार हो || नविका० नैवेद्य० ॥ ३ ॥ गुंदवमां ने रेवमीरे, शाल दाल घृत गोळ; प्रभु भक्ति थी पूजीएरे, होवे ज्युं रंग चोलहो । जविका० नैवेद्य ॥ ४ ॥ दलीय पुरुष पेरे पूजनारे, जे क रशे नरनार, बुद्धि शिवसुख संपदारे, पामी लहे नवपार दो || नविका० नैवेद्य० ॥ ५ ॥
(वीर जिऐसर नपदिशे. ए देशी. ) भावना पूजा भावग्री, नैवेद्यनी जे करशेरे; प्रव हा सम वे भावना, भावे ते शिव वरशे रे ॥ भाण ॥ १ ॥ श्रा संसार अनित्य बे, संध्यारंग सम देखोरे; तेमां जन्म मरण कर्या, आवे नहि तस लेखोरे ॥ भा० ॥ २ ॥ शरण नहि संसारमा, म रता जीवने कोइरे: मृत्युवश थया जीवने, नहि कोइ जगमां सखाइरे ॥ भा० ॥ ३ ॥ त्रण भुवन
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