Book Title: Pooja Sangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Jainoday Buddhisagar Samaj Sanand
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(३४) ए॥१॥ हिंसा जूठ चोरी तजो, परनारी निरधारहो नविक ॥ तनु धन ममता परिहरो, रय एगीनोय अंधकारहो नविक ॥ भाव०॥॥ दिशीगमन नियम करो, चनद नियम नित्य धा रहो भविक ॥ बत्रीश अनंतकाय तिम, अभक्ष्य बावीश निवारहो भविक ॥ भाव०॥३॥ कषाय मद विकया वळी, विषय निंश त्यागहो भविक । चित्त संतापना हेतुजे, तेथी न धरीये रागहो भविक ॥ भाव ॥४॥ अहं मम मोह मंत्रनो; त्याग करो गुणवंतहो भविक ॥विपरीत मंत्र म ननथकी, थान शाश्वत सुखवंतहो भविक ॥भा व०॥५॥अनंत रत्नत्रयी गुणै, चतन व्य वि चारहो भविक ॥कर्म विनाशयी संपजे, स्थीति सादि अपारहो भविक ।। भाव०॥६॥ अक्षत अक्षय सुख भणी, भावपूजा सुरसालहो भविक ॥ बुद्धि शिवसुख संपदा, पामे मंगल मालहो।
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71