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अनंत; कर्ता तेहनो को नहिरे, श्म नखे श्री नगवंत ॥ श्रीसंखे०॥३॥ नवतत्त्व षड्व्य में नित्य शाश्वतारे, इव्य गुण पर्याय रूप; को भेदे जीव दाखीयारे, तस.लक्षण चिद्रुप ॥ श्री संखे०॥धा परिणामी पुद्गल जीव दो जाणी एरे, अनादि संबंध विचार; कर्ता कर्मनो पातमारे, तेम नोक्ता हृदये धार ॥ श्री संखे । शन्जाशन कर्म ग्रही भोगी भातमारे, वेदेशाता अशाता दोय; देव मनुज नारक तिरिरे, घनगतिमां भटके जोय ॥ श्रीसंखे०॥६॥ जीवे की धां पुण्य पाप ते भोगवेरे, परपुद्गल संगेखास; राच्यो माच्यो पुद्गलमां वस्योरे, बन्यो पुद्ग लनो जीव दास ॥श्रीसंखे॥७॥ प्रभु पूजा करतां प्राणीया सुख लहेरे, नासे कमीष्टक पास; सामीवच्छल नवकारशीरे, हेतु सुखनांदीसे खास ॥ श्री संखे०॥७॥ शुम भावे नैवेद्य प्रा.
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