Book Title: Pooja Sangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Jainoday Buddhisagar Samaj Sanand
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(६८) कित वरीयरे ॥श्रीसंखे ॥१॥ यादव लोक नी जरा निवारी, षड्दर्शन विख्यातरे; वामानंदन जगजन वंदन, नमतां पावन गात्ररे ॥श्री संखे ॥॥ परपरिणतिथी अष्टकर्म ग्रही, पर भोगी परकतारे; अतुलबली पण कर्म पिंजर मां, वसीयो निज गुण धरतारे॥श्रीसंखेणा॥ औदारिक वैक्रियाहारक, तैजस कर्मण पंचरे; पंचशरीर घर मानी वशीयो, करतो कर्मनो सचरे॥श्री संखे ॥४॥ सुरापानी बकतो फरे वळी, धत्तुर भक्षक जेमरे; अवली परिणतिथी या आतम, स्वरूप भुख्यो तेमरे॥ श्रीसंखे०॥ ५मनवमां भमतां पुण्योदयथी, सद्गुरु सहेजे मळीयारे; बुद्धि शिवसुख पामे अविचल, सकल मनोरथ फलीयारे । श्रीसंखे॥६॥
नमो नगवते श्रीसंखेश्वर जलं चंदनं पुष्य धपं दीपं अक्षतं नैवेद्यं फलं यजामहे स्वाहाः ।।
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