Book Title: Pooja Sangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Jainoday Buddhisagar Samaj Sanand

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Page 65
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समकाले लाधे, एवो पातमरायरे ॥ श्री संखे० ॥३॥ धर्मा धर्मने पुद्गलाकाश, तेह तणा प्र देशरे ॥ गुणपर्यायधर्म तस केरा, नहिं एक जी व गुण लेशरे ॥श्री संखे ॥४॥ ६ बुझ परमात्म स्वरुप, अव्याबाध अभंगरे । अविनाशी अकलंक अभोगी, भोगी अयोगी असंगरे ॥ श्री संखेगा। नित्यानित्यने एकानेक, सदसत् भाव विचाररे॥वक्रव्या वक्रव्य एघाउ, परतणो आ धाररे ॥श्री संखे॥६॥ शुश्स्वरूपी ज्ञानानंदी, चेतन वास कहायरे ॥ सुख अनंतु चेतन घ रमां, वचन अगोचर थावरे ॥ श्रीसंखे ॥७॥ प्रात्म यकीबुटे जब कर्म,तब पामे शिवस्थानरे। शाश्वत अमलअचलपदभावे, वास्तुकपूजा.मान रे ॥ श्रीसंखे०॥७॥ एखीपरे वास्तुकपूजा कर शे, ते तरशे संसाररे॥बुझिसागर कायिक सम कित, पामीबहे भवपाररे॥श्रीसंखे०॥ For Private And Personal Use Only

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