Book Title: Pooja Sangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Jainoday Buddhisagar Samaj Sanand

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir येरे।। विरतिथी कय कर्मनो करतां, शिवपुर मा रग वहीयेरे॥शाश्वत ॥ ५॥ बाहिर अंतर प रम ए तीन, आत्म परिणति समजोरे॥परमात मपद लक्ष्य विचारी,अंतर आतम रमजोरेशा श्वत ॥६॥शरीर वाणो मनश्री जूदो, आत्मव्य चित्त धरतोरे॥ अरूपी असंगी निर्मल, ता सध्यान मन करतोरे ॥शाश्वत ॥णाराग ष मोहरायना जोड़ा, तेहनी साथे वढतोरे । आत्मा आप स्वरूपे खेली, कपकश्रेणीए चढतोरे ॥शा॥७॥वीर्योल्लास वधे गुण प्रगटे, कर्म कलंक खपावरे॥शुक्लध्यान पायाए चढतो, केवलज्ञान गुण पावरे ॥शा ॥ ए ॥ आयुष्य स्थिति पूर्ण करीने, शरीर संग दूर करतोरे॥ज न्म मरगना फेरा टाळी, सादि अनंत स्थिति व रतोरे ॥शा ॥१०॥5:खानावरूप मुक्ति मा ने,नैयाधीक मतवादी॥सर्व व्यापक मुक्ति मा For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71