Book Title: Pooja Sangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Jainoday Buddhisagar Samaj Sanand

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४३) उनमें बुक्तणां ग्रही, फळ रमणीक मनोदार ॥ प्रेमे पूजो भविजना, होवे जयजयकार ॥ २ ॥ (ऋषनिदर्शप्रीतमी. ए देशी. ) फळपूजा जिनराजनी, भवि कीजे दो भावे सुखकार || शास्त्र विधि अनुसारथी, लहो शुभ फळहो पामो भवपार ॥ फळ० ॥ १ ॥ श्रीफळ श्राम्र बदामने, सीताफळ हो दामीम हितकार ॥ केळां पस्तां नीमजां, रायणफळ हो मेवो जयका र ॥ फळ० ॥ २ ॥ काळ अनादि जीवने, नहीं तृप्तिहो मनमांदी लगार || विविध फळ भक्षण करी, जीव रऊब्योहो चनगति मोऊार ॥ फळ ० ॥ ३ ॥ जीव लालचीयो लंपटी, फळ भक्षणबी हो नदि विरम्यो लगार || पाप भय नवि चित्त गयो, भक्ष्या भक्ष्यनोदो नवि करीयो विचार ।। फळ० || ४|| जिनशासन अंगी करी, प्रभु धागे दो करूं विनति एम ॥ फळ मूर्ग नतारतो, प्रभु For Private And Personal Use Only

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