Book Title: Pooja Sangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Jainoday Buddhisagar Samaj Sanand
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(४२)
शिवसुख कारण धर्मने, केम मनश्री नवि साधे रे ॥ भा० ॥ ११ ॥ जेथी कर्म रोकाय बे, तेहीज संवर जालोरे, करजो प्रादर तेहनो, एहीज धर्म वखाणोरे ॥ भा० ॥ १२ ॥ तप द्वादश चित्तधारीए, लोक स्वभावने समजोरे; श्राप स्वभावे स्थीर थर, परपुद्गल मत रमजोरे ॥ भा० ॥ १३ ॥ बोधि दुर्लभ जाणीने, जीन आला शिर वदी ऐर; अरिहंत भाषीत धर्म ठे, सत्यधर्म जीन कदी एरे || भा० ॥ १४ ॥ जम पुलथी भिन्न बे, रूपी श्रातम स्वरूपरे; बुद्धिसागर घ्यावतां, या वे शिवपुर नूपरे ॥ भा० ॥ १५ ॥
नँ । श्री - नवेद्यं यजामहे स्वाहा.
॥ अथ अष्टम फलपूजा प्रारंभः ॥
उदा.
आठमी फलनी पूजना, करीए भवि हित लाय ॥ फलपूजाश्री पामीए, शिवफल अतिसुखदाय ॥ १
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