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(४१)
मां प्राणीयो, भटक्यो अनंति वाररे; माता लल नापणे हुवे, पिता पुत्र विचाररे ॥ भा० ॥ ५ ॥ पुरुष स्त्रीपणे होवतो, ए संसार स्वरूपरे; संसा रमां जो राचशो, तो पमशो भवकूपरे ॥ भा० ॥ ५ ॥ पुत्र स्त्री परिवारने, मारु मारू मानेरे; सत्य वचन जिणवरतणां, सांभळतो नहि कानेरे ॥ भा० ॥ ६ ॥ शरीर पंजरमां रह्यो, चेतन एक मन श्रारे; एकलो श्राव्यो एकलो, जाइश परभव जालरे ॥ भा० ॥ ७ ॥ तन धन मंदिर मालीयां, पुत्र कलत्रने भाइरे; ताराथी ए भिन्न बे, जूठी तास सगाइरे ॥ भा० ॥ ८ ॥ सात धातुथी नीप नी, अशुचिमय या कायारे; विष्टा मूत्र शरीरमां, करवी शीत समायारे ॥ भा० ॥ ए ॥ जीव माताना पेटमां, मल मूतरमां रही योरे; दुःख अनंतु त्यां सयुं, पवित्र शुं हवे थइयोरे ॥ भाणा १० ॥ समये समये कर्मने, हे चेतन तुं बांधेरे;
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