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(४२)
॥ कलश ॥
इम सकल सुखकर इव्यजावे, पूजा अष्टमकारीए; जणे जलावे सुखे जे नवि, ते शिवसुस्व लदे मारीए ॥ तपगच्छ शाखा गगनमंगळ, दिवाकर परे बाजता; वैराग्यरंगे व्याप्युं जस मन, महिमा जग जस गाजता ॥ १ ॥ रविसागर गुरु प्रेमे प्रणमुं, संवेगी शिरदारए; जस नाम दे तां सकल मंगल, पामे जवि नरनारए । तस प द पंकज मूंगश्रमश्री, सुखसागर गुरु बालए; इम बुद्धिसागर शिव सनातन, पामे मंगल मालए ॥ २ ॥
॥ इति ष्टकारी पूजा संपूर्ण. ॥
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