Book Title: Paumchariu Part 3
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 335
________________ क० ११, २-१०, १२, १-९, १३, १-२] उत्तरकण्डं-अट्ठासीमो संधि [२७५ सत्तुहणु वि स-भिक्षु रिसि जायउ वजजङ्घ णिय-भज-सहायउँ.॥२ लङ्कहें णिय-पऍ थवेविं सु-भूसणु . सहुँ तियडऍ पव्वइउ विहीसणु ॥३ णिय-पउ अङ्गय-तणयहाँ देप्पिणु सुग्गीवु वि थिउ दिक्ख लएप्पिणु ॥ ४ तिह णल-णील सेउ ससिवद्धणु तारु तरङ्गु रम्भु रइवद्धणु ॥ ५ गवउ गवक्खु सङ्गु गउ दहिमुहु इन्दु महिन्दु विराहिउ दुम्मुहु ॥ ६ जम्वउ रयणकेसि महुसाररु अङ्गउ अङ्गु सुवेलु गुणायरु ॥७ जणउ कणउ ससिकिरणु जयन्धरु कुन्दु पसण्णकित्ति वेलन्धरु ॥८ इय अवर वि जिण-मुण सुमरेन्ता सोलह सहस पहुहुँ णिक्खन्ता ॥ ९ ॥ घत्ताना ॥ हरि-वल-मायरि-सुप्पह-पमुहहुँ सुग्गइ-गमण-परिट्ठिय-समुहहुँ । पव्वइयइँ जगें णाम-पगासइँ जुवइहिँ सत्ततीस सहास. ॥ १० [१२] सो राम-महारिसि विगय-णेहु छणदिण-ससहर-कर-धवल-देहु ॥१ उद्धरिय-महन्वय-गरुअ-भारु मय-वइरि-णिवारणु पहय-मारु ॥ २ वारह-विह-दुद्धर-तव-णिउत्तु परिसह-परिसहणु ति-गुत्ति-गुत्तु ॥ ३ गिरि-सिहर परिहिउ एक्क-झाणु सव्वरि-उप्पाइय-अवहि-णाणु ॥ ४ परियाणिय-हरि-उप्पत्ति-थाणु सुमरिय-भव-भय-कय-गुण-णिहाणु ॥५ विहडिय-दिढ-दुक्किय-कम्म-पासु अइकन्त-पवर-छट्टोववासु ॥ ६ विहरन्तु पत्तु धण-कणय-पवरु सन्दणथलि-णामु पइट्ट णयरु ॥७ तहिँ पाराविउ णामिय-सिरेंण भत्तिएँ पडिणन्दि-णरेसरेण ॥८ ॥ धत्ता ॥ तहाँ सुर-दुन्दुहि साहुक्कारउ गन्ध-वाउ वसु-वरिसु अपारउ । कुसुमञ्जलिऐं समई वित्थरियइँ अत्थक्कएँ पञ्च वि अच्छरियइँ॥९ [१३] पुणु पहुहें अणेय. वयइँ देवि तं सन्दणथलि-पट्टणु एवि (2) ॥ १ विहरइ महियले बलु-मुंणिवरिन्दु णं आसि पहिल्लउ जिण-वरिन्दु ॥२ 11. ! A °उं. 2 PS ‘णु. 12. 1 P . 13. 1 A महि महियले. 2 A मुणिंदु. 20 25 [११] १ त्रिजटाभगिनीसह. [१२] १ वेगेन । आकस्मिकम्. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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