Book Title: Paumchariu Part 3
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: ZZZ Unknown
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२९०] सयम्भुकिउ पउमचरिउ.
[प्र०७-१९ चउमुह-सयम्भुएवाण वाणियत्थं अचक्खमाणेण . तिहुअण-सयम्भु-रइयं पञ्चमिचरियं महंच्छरियं ॥७ सव्वे वि सुआ पञ्जर-सुअ ध पढियक्खराइँ सिक्खन्ति । कइरायस्स सुओ पुण सुय ब्व सुइ-गब्भ-संभूओ॥ ८. तिहुअण-सयम्भु जइ ण होन्तु' (?) णन्दणो सिरि-सयम्भुदेवस्स । . कव्वं कुलं कवित्तं तो पच्छा को समुद्धरइ॥ जइ ण हुउ छन्दचूडामणिस्स तिहुअण-सयम्भु लहु-तणओ। तो पद्धडिया-कव्वं सिरि-पञ्चमि को समारेउ ॥ १० सव्वो वि जणो गेण्हइ णिय-तांय-विढत्त-दव्व-सन्ताणं । तिहुअण-सयम्भुणा पुणु गहियं सुकइत्त-सन्ताणं ॥ ११ तिहुअण-सयम्भुमेकं मोत्तूण सयम्भु-कव्व-मयरहरो। को तरइ गन्तुमन्तं मझे निस्सेस-सीसाणं ॥ १२
इय चारु पोमचरियं सयम्भुएवेण रइयं (यम ?) समत्तं । तिहुअण-सयम्भुणा तं समाणियं परिसमत्तमिणं ॥ १३ 'चेष्टितमयनं चरितं करणं चारित्रमित्यमी यच्छब्दाः । पर्याया रामायणमित्युक्तं तेन चेष्टितं रामस्य ॥ १४ वाच यति श्रुणोति जनस्तस्यायुर्वृद्धिमीयते पुण्यं च । आकृष्ट-खड्ग-हस्तो रिपुरपि न करोति वैरमुपशममेति ॥ १५
माउर-सुअ-सिरिकइराय-तणय-कये-पोमधरिय-अवसेसं । संपुण्णं संपुण्णं वन्दइओ लहइ संपुण्णं ॥ १६ गोइन्द-मयण-सुयणन्त-विरइयं वन्दइ-पढम-तणयस्स । वच्छल्लदाएँ तिहुअण-सयम्भुणा रइयं (?) महप्पयं ॥ १७ वन्दइय-णाग-सिरिपाल-पहुइ-भव्वयण-गण-समूहस्स। आरोगत्त-समिद्धी सन्ति-सुहं होउ सवस्स ॥ १८ सत्त-महासग्गङ्गी ति-रयण-भूसा सु-रामकह-कण्णा । तिहुअण-सयम्भु-जणिया परिणउ वन्दइय-मण-तणयं" ॥ १९
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4 s हुतु. 5A बोधयति. 6 A श्रीकृष्ण'. 7A मोवर. 8 A. omits. 9A लहुउ. 10 A °ससिद्धी. 11 A °तणउ.
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