Book Title: Paumchariu Part 3
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 345
________________ क० ३, ३-८; ४, १–८, ५, १-५ ] उत्तरकण्डं - णवइमो संधि [ २८५ 'वहु-दिवसहिँ त घोरु करन्ता तम्वचूड- पुरवरु गय अत्तिएँ तावग्गऍ वालुय - रयणायरु तवण-त-वालुअ- 'विहालउ. परमागम - जुत्तिएँ विहरन्ता ॥ ३ तिणि वि गय जिण-वन्दण - हन्तिऍ ॥ ४ दीसइ रंउ व दुग्गम-दुत्तरु ॥ ५ म सरसों णाइँ विसाल ॥ ६ सो कह कह वि दुक्खु आसङ्घिउ सिद्धेहिँ भव-संसारु व लङ्घिउ || ७ ॥ घत्ता ॥ ते तिणि वि' जण मुणि-पुङ्गव वज्जय- असोय-तिलएसैर तो 'घण-घेण- घोरोरालि दिन्तु अइ-धवल चलाया पन्ति-दाढु ओसारिय-सूयव- कुरङ्गु 'हरिवर-वरहिण-रव- रुखमाणु जल-पूरिय- तडिणि- पवाह-चलणु पचलन्त-महद्दह- 'रुन्द-वयणु चल - विज्जु-ललाविय दीह-जीहु तं पेक्खवि णिरु आसण्णर्ड वर्ड - पायव-मूले 'सु- वित्थऍ णिण्णासिय-दुट्ठट्ठ-मय । जोयणाइँ पञ्चास गय ॥ ८ [३] १ समूहस्थान. [ ४.] १ मेघसिंहः. पादौ यस्य. ३ विस्तीर्ण. [ ४ ] सुरधणु-पईह - ङ्गूलवन्तु ॥ १ जलधारा -धोरण- केसरादु ॥ २ णिहारिय- गिम्भ-महा-मय ॥ ३ फुलन्त - णी - हरैहिँ समाणु ॥ ४ वावी - तलाय - सर-नियर-सवणु ॥ ५ दुत्तार - खड्ड - विच्छिड्डु-णयणु ॥ ६ सम्पाइ उ वासारत्त-सीहु ॥ ७ ॥ धत्ता ॥ [५] af अवसरें सिरिमलिणि-कन्तें उज्झाउरि गयणङ्गणें जन्तें ॥ १ जणयहां णन्दणेण विक्खाएं पेक्खवि चिन्ति विषय - सहाएं ।। २ ऍउ महन्तु अच्चरिउ मणोहर कहिँ वालय- समुद्दु कहिँ मुणिवर ॥ ३ कहिँ भव-पहु कहिँ सिद्ध-भडारा कहिँ अ- णिउणु कहिँ गुण-गरुआरा ॥ ४ कहि देसि कर्हि वर - णिहि रयणइँ कहिं दुज्जणु कहिँ सुन्दर वयणइँ ॥ ५ Jain Education International विणें महा-वर्णे भय- रहिय । तिण्णि वि जोगु लएवि थिय ॥ ८ 3 The portion from बहु° to अत्तिए ( line 4 a ) is omitted in A. दुसमदुरुत्तरु. 5 Ps. 6 Psमि. 4. 1.Ps हरि 2 PS ओ. 3PS णीव. ° 4PA 3. 5 A वे. रथडए. २ 'गुरुहराट' शब्द: लोके. ३ मण्डूक. ७ वर्षाकाल ra सिंहः For Private & Personal Use Only ४ शब्दः . 4 A णरउ 6PS सुवि ५ नदीप्रवाहः 5 10 15 20 25 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388