Book Title: Paumchariu Part 3
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 346
________________ २८६] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० ५, ६-९, ६, १-९,७,१-८ कहिँ दुग्गन्ध-रेण्णु कहिँ महुयर कहिँ मह-णरय-भूमि कहिँ सुरवर ॥६ दूर-भव्वु कहिँ कहिँ सु-पहाण तव-चरित्त-वय:दसण-णाण ॥७ अह जाणिय-कङ्कालासण्णा महु पुण्णोदएण सम्पण्णा' ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ ऍउ भामण्डलेंण वियप्पेंवि अच्चासण्णउ पय-पउरु । वर-विजा-वलेंण स-देसउ किउ मायामउ परम-पुरु ॥ ९ [६] णिम्मियाइँ विउलइँ अ-पमाणइँ थामें थामें भणहर-उज्जाण ॥१ थामें थामें धण-कण-जुअ-णयर गोहइँ गोहण-गोरस-पउरई॥२ " थामें थामें जिणहर-देवउलइँ डिम्भइँ णाइँ महच्छुह-बहुलइँ ॥३ थामें थामें वहु-गाम पुरोवम थामें थामें आराम मणोरम ॥४ थामें थामें पोक्खरणिउ सरवर वावी-कूव-तलाय लयाहर ॥५ थामें थामें णिम्मल णिरु णीरइँ महिय- ससाह-सिसिर-धिय-खीर ॥ ६ . थामें थामें सालिउ फल-सारउ इक्खु-महारसु अइ-गुलियारउ ॥ ७ थामें जण-णयणाणन्दणु भविय-लोउ जिणवर-कय-वन्दणु ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ तं करेंवि एव णिविसद्धेण चरिया-गये खम-दम-दरिसि । सद्धाइ-गुणालङ्करिऍण तें भुञ्जाविय परम रिसि ॥९ [७] 20. जिह ते तिह अवर वि वहु-देसहिँ दुग्गम-दीव-समुदुद्देसहिँ ॥ १ भरह-पमुह-खेत्तेहिं गिरि-विवरेंहिँ काणणेहिँ जिण-तित्थेहि पवरेंहिँ ॥२ णिजण-णिप्पाणिय-दुपवेसेंहिँ मुणि पाराविय विसम-पवेसेंहि ॥३ तेण फलेण मरेवि स-कन्तउ उत्तम-भोग-भूमि सम्पत्तउ ॥४ तहिँ अच्छइ जण-णयण-मणोहरु तुह केरउ चिर-पढम-सहोयरु ॥५ - 'दण्ड-सट्ठि-सय-तणु-परिमाणउँ तिण्णि-पल्ल-परमाउ-समाणउँ ॥६ तण्णिसुणेवि वयणु सिय-इन्दे(?) पुणु वि पपुच्छिउ गुरु-आणन्दें ॥७ 'णारायणु दस-कन्धरु दुम्मइ वेण्णि वि जण सम्पाइय- दुग्गइ ॥ ८ - 5. 1 PS °रण्णे, A °श्यणु. 6. 1 PS मे. 7. 1 PS °वरेहिं. 2 A संकं. 3 P S °पवर. 4 PA उं. 5A सियदेवें. [५] १ के पानीयं तस्य कालः वर्षाकाल:. : [६] १T महत् क्षुधा; बुभुक्षा । छुधा चूर्णं वा. २ स-'मलाई' लोके. [७] १T कोशत्रयशरीरप्रमाणम्. .२ तृतीयनरके. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388