Book Title: Paumchariu Part 3
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: ZZZ Unknown
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ID
क० ९,३-१२,१०, १-९,११,१j उत्तरकण्डं-णवासीमो संघि [२८१ अन्ज वि दुरास उवंसमु ण होइ दुहु पत्त अण्णु जि णाई कोइ ॥ ३ कूरत्तणु मुऍ करें विमल चित्तु', तं णिसुणेवि णं अमिएण सित्तु ॥ ४ उवसम-भावहाँ सम्वुक्कु ढुक्कु पुणु पुणु वि पवोहइ सीय-सक्कु ॥ ५ तो णवरि विमाणोवरि णिएवि लक्खण रावण पुच्छन्ति वे वि ॥६ 'को तुहुँ के कजें एत्थु आउ' विहसेप्पिणु अक्खइ अमर-राउ ॥ ७ 'हउँ सा चिरु होन्ती.जय-धीय जा रावण पइँ अवहरेंवि णीय ॥ ८ जा 'मत्ते सार रामा-यणासुः जा जम-दिहि व णिसियर-जणासु ॥ ९ तव-चरण-पहावें जाय इन्दु अण्णु वि दिक्खङ्किउ रामचन्दु ॥ १० तहों कोडि-सिलायलें णाणु जाउ हउँ युणु तुम्हहँ वोहणहँ आउ ॥ ११
॥घत्ता ॥ महु कारणे विहि मि जणेहिँ जाइँ महन्ताई। भव-सायरें कोह-वसेण दुक्खइँ पत्ताइँ ॥ १२
[१०] कोहु मूलु सव्वहुँ वि अणत्थहुँ __ कोहु मूलु संसारावत्थहुँ ॥१ कोहु विणास-करणु दय-धम्महाँ कोहु जे मूलु घोर-दुक्कामहों ॥ २ ॥ कोहु में मूलु जग-त्तय-मरणहों कोहु जे मूलु णरय-पइसरणहों ॥३ कोहु जें वइरिउ सव्वहाँ जीवहीं तें कजें अहो हरि-दहगीवों ॥४ कोहु विसजहों बिसम-सहावहाँ अवरोप्परु मित्तत्तणु भावहाँ' ॥५ तण्णिसुणेवि इय वयणाणन्तरे तिणि वि ते उवसमिय खणन्तरें ॥६ 'किं दय-धम्म ण किय दिहि तइयहुँ आसि लडु मणुअत्तणु जइयहुँ ॥ ७ ॥ हा हा काइँ पाउ किउ वड्डउ जें सम्पाइय दुहु एवडउ ॥ ८
॥पता ॥ तुहुँ पर धण्ण जिय-लोयएँ जे छण्डिय कु-मइ जिण-चयणामय परिपीबउ जाउ सुराहिवई' ॥९
[११] तो परिवड्डिय मणे कारुण्णे वासवेण 'दुव्बङ्गुरे-वण्णें ॥१
9. 1 A उं. 2 PS A °रिवि. 3 s मत्ति, A मंति. __10. 4 P 8 A °हु. 2 PS ते विनि (°णि) वि. 3 A हो हो. 4 PSA इ. 5A वड्ढउं. 6 PA . ___11. 1P °कुरु', s °कु.
[२] १ या मी मनुष्येषु स्त्रीषु मध्ये सारभूता सीता. [११] पाण्डुरेण.
'पउ० च० ३६
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