Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 6
________________ आंखों की कमजोरी और प्रत्येक फार्म का प्रूफ अपने पास मंगवाने पर ग्रन्थ के मुद्रण में समय बहुत लग जायेगा इस विचार से प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रूफ सुधारने का कार्य ब्यावर के एक जैन विद्वान् को सौंपा था और प्रारम्भ में प्रूफ संशोधन ठीक ही हुआ है पर नियुक्त पंडितजी के दूसरे व्यक्ति को प्रूफ देखने का कार्य सौंप कर मास भर तक अन्यत्र चले जाने के बाद में नये प्रूफ रीडर के संशोधन में अशुद्धियां अधिक रह गई हैं, कुछ श्रशुद्धियां घिसे हुए रद्दी टाइपों के इस्तेमाल करने से भी बढ़ी हैं यह पाठकगरण को स्वयं ज्ञात हो जायगा । हमने प्रूफ रीडिंग की और टूटे घिसे टाइपों के कारण से हुई प्रशुद्धियां भी शुद्धिपत्रक में ले ली हैं, पाठक महाशय जहां कहीं अक्षर सम्बन्ध स्थल शंकित जान पड़े वहां शुद्धिपत्रक देख लिया करें । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only [ पांच www.jainelibrary.org

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