Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 4
________________ प्रास्ताविक दो शब्द पट्टावलीपराग ग्रन्थ में दो पट्टावलियां सूत्रोक्त हैं, पहली पर्युषणाकल्प सूत्रोक्त और दूसरी नन्दीसूत्र के प्रारम्भ में लिखी हुई अनुयोगधरों की परम्परा । इन सूत्रोक्त पट्टावलियों के आगे दिगम्बर सम्प्रदाय की कतिपय पट्टावलियों की चर्चा करके प्रथम परिच्छेद की समाप्ति की है। द्वितीय परिच्छेद में मुख्य रूप से तपागच्छ की धर्मसागर उपाध्यायकृत पट्टावली दी है और उसके बाद तपागच्छ की अनेक शाखा-पट्टावलियां और अन्यान्य प्रकीर्णक गच्छों की पट्टावलियां देकर दूसरा परिच्छेद पूरा किया है । तीसरे परिच्छेद में केवल खरतरगच्छ की १२ पट्टावलि-गुर्वावलियां देकर इसे भी पूरा किया है। चतुर्थ परिच्छेद में लौंकागच्छ, बाईस सम्प्रदाय और कडवामत की पट्टावलियां दी हैं। ___ ग्रन्थ का नाम हमने "पट्टावलीपराग" दिया है, क्योंकि प्रत्येक पट्टावली अक्षरशः न लेकर उसका मुख्य सारभाग लिया है। पट्टावलियों में जहां-जहां समालोचना की आवश्यकता प्रतीत हुई वहां सर्वत्र समालोचना गभित उसके गुण-दोषों की चर्चा भी करनी पड़ी है, हमारा उद्देश्य किसी भी पट्टावली के खण्डन-मण्डन का नहीं था, फिर भी जहां-जहां जिनमें [ तीन ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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