Book Title: Patrimarg Pradipika
Author(s): Mahadev Sharma, Shreenivas Sharma
Publisher: Kshemraj Krishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ लंकोदयाः रतलाम। चरखंडा: रनरस्यदत्रोदया: पत्रीमार्गप्रदीपिका। तीसका भाग देना, लब्ध आवे वह पलादिक ध्रुव जानना (स्वदेशोदयको ३० तीसका भाग देनेसे स्वदेशोदयका पलादि ध्रुव और लंकोदयको ३० का भाग देनेसे लंकोदयका पलादि हो) उदाहरण। रवलामशहरके मेषराशिके स्वदेशो- म. २७८ मी. ५१ मे. २२० मी. दयपल २२७ के ३० तीसका भाग मि. ३२३ म. १५ मि. ३०६ म. दिया लब्ध ७ । ३४ आया यह मेष क. ३२३ ध. क. ३४० घ. राशिका स्वदेशोदयका पलादि ध्रुव हुआ सिं. २९७ . ४१ किं. ३४० व. .२७८ ५१ कि. ३२९ तु.. इसी प्रकार मेषराशिके लंकोदयपल २७८ के ३०तीसका भाग दिया,लब्ध९।१६ आये, यह मेषराशिका लंकोदयका पलादिक ध्रुव हुआ, इसीतरह स्वदेशोदय और लंकोदयको बारह ही राशियोंके पलादिक ध्रुव जानना ॥ १ ॥ वृ. २५८ अथ लगदशमपत्रसाधनमाह - स्थापयेत्खं क्रियारंभे ततः स्वध्रुवकान्वितम् । निरयनं भवेत्पत्रं लग्नस्य दशमस्य च ॥२॥ . अब लग्नपत्र दशमपत्र बनानेकी रीति कहते हैं-मेषराशिके आरंभमें (मेषराशिके० शून्य अंशके नीचे ) तीन शून्य लिखना,अनंतर स्वदेशोदय और लंकोदयकी मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, आदिक राशियोंके पलादिक ध्रुव क्रमसे युक्त करना सो निरयनलमपत्र दशमपत्र हो (स्वदेशोदयकी मेषादिक राशियोंके पलादिक ध्रुव युक्त करनेसे लमपत्र और लंकोदयकी मेषादिक राशियोंके पलादिक ध्रुव युक्त करनेसे दशमपत्र होता है ) ॥ २॥ उदाहरण। नीचे लिखे हुए चक्रमें मेषराशिके आरंभमें तीन शून्य लिखके रत्नपुर ( रत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 162