Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 4
________________ यह पहली बात है योग के विषय में समझ लेने की : योग एक विज्ञान है। योग एकदम यथार्थ और अनुभव पर आधारित है। यह विज्ञान की प्रत्येक कसौटी पर खरा उतरता है। असल में हम जिसे विज्ञान कहते हैं वह कुछ और बात है, क्योंकि विज्ञान केंद्रित होता है विषय वस्तुओं पर और योग का कहना है कि जब तक तुम उस तत्व को नहीं समझ लेते जो कि स्वभाव है, जो कि निकट से भी निकटतम है, तब तक तुम कैसे विषय वस्तु को समझ सकते हो? अगर व्यक्ति स्वयं को ही नहीं जानता, तो अन्य सभी बातें जिन्हें वह जानता है, भ्रांतिपूर्ण ही होंगी, क्योंकि आधार ही नहीं है। अगर भीतर ज्योति नहीं हो, अगर भीतर प्रकाश नहीं हो, तो तुम गलत भूमि पर खड़े हो तो जो भी प्रकाश तुम बाहर लिए खड़े हो, वह तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकेगा। और अगर भीतर प्रकाश हो, तो फिर कहीं कोई भय नहीं है, बाहर कितना ही अंधकार हो, तुम्हारा प्रकाश तुम्हारे लिए पर्याप्त होगा। वह तुम्हारा मार्ग प्रकाशित करेगा। तात्विक बातें किसी तरह की मदद नहीं करती हैं, वे और उलझा देती हैं। ऐसा हुआ : जब मैं विश्वविद्यालय में विद्यार्थी था, मैंने एथिक्स, नीति-शास्त्र लिया था। मैं उस विषय के प्रोफेसर के केवल एक ही लेक्चर में उपस्थित हुआ। मुझे तो विश्वास ही नहीं आ रहा था कि कोई व्यक्ति इतना पुराने विचारों का भी हो सकता है। वे सौ साल पहले जैसी बातें कर रहे थे, उन्हें जैसे कोई जानकारी ही नहीं थी कि नीति - शास्त्र में क्या-क्या परिवर्तन होचुके हैं। फिर भी उस बात को मैं नजर अंदाज कर सकता था। वे प्रोफेसर एकदम उबाऊ आदमी थे, और जैसे कि विद्यार्थियों को बोर करने की उन्होंने कसम ही खा ली थी लेकिन वह भी कोई खास बात न थी, क्योंकि मैं उस समय सो सकता था। लेकिन इतना ही नहीं वे झुंझलाहट भी पैदा कर रहे थे, उनकी कर्कश आवाज, उनके तौर-तरीके, उनका ढंग, सब बड़ी झुंझलाहट ले आने वाले थे। लेकिन उसके भी अभ्यस्त हुआ जा सकता है वे स्वयं बहुत उलझे हुए इंसान थे। सच तो यह है मैंने कभी कोई ऐसा आदमी नहीं देखा जिसमें इतने सारे गुण एक साथ हों। मैं उनकी कक्षा में फिर कभी दुबारा नहीं गया। निश्चित ही, वे इस बात से नाराज तो हुए ही होंगे, लेकिन उन्होंने कभी कुछ कहा नहीं। वे ठीक समय का इंतजार करते रहे, क्योंकि उन्हें मालूम तो था ही कि एक दिन मुझे परीक्षा में बैठना है। मैं परीक्षा में बैठा। वे तो और भी चिढ़ गए, क्योंकि पंचानबे प्रतिशत अंक मुझे मिले। उन्हें तो इस बात पर भरोसा ही नहीं आया। एक दिन जब मैं यूनिवर्सिटी की कैंटीन से बाहर आ रहा था और वे कैंटीन के भीतर जा रहे थे, उन्होंने मुझे पकड़ लिया। मुझे रोककर वे बोले, सुनो! तुमने यह सब कैसे मैनेज किया? तुम तो केवल मेरे एक ही लेक्चर में आए थे, और पूरे साल मैंने तुम्हारी शकल नहीं देखी। आखिर तुम पंचानबे प्रतिशत अंक पाने में सफल कैसे हुए?

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