Book Title: Parshvanath Author(s): Chauthmal Maharaj Publisher: Gangadevi Jain Delhi View full book textPage 8
________________ पाश्वनाथ के लिए ही व्यय करता था । शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षा आदि प्रजोपयोगी कार्य उस कर से किये जाते थे। इस प्रकार उस समय राजा और प्रजा मे बड़ा ही मधर संबंध था। राजा, प्रजा के पोपण के लिए है शोपण के लिए नहीं, यह सिद्धान्त उस समय आम तौर पर व्यवहार में लाया जाता था। महाराज अरविन्द के एक ही पत्नी थी। उसका नाम था धारिणी । महारानी धारिणी स्त्रियों के समस्त गुणों से सुशोभित थी। वर्मशीला, दयालु और उदार हृदया थी। दोनों एक दूसरे के सखा, सहायक और साथी थे। महाराज अरविन्द के राज्य मे विश्वभूति नामक एक मुख्य राज पुरोहित रहता था । वह जैन धर्म का निश्चल श्रद्धानी श्रावक था। उसने श्रावक के बारह व्रतों को धारण किया था और साव. धानी से यथाविधि उनका पालन करता था। वह शात्रवेत्ता था और अव्यात्मवेत्ता भी था । वह अपने धर्म पर सदा निश्चल रहता था। आजीविका के उच्छेद का भय या और किसी प्रकार का भय उसे छू भी न गया था। यहां तक कि राज-भय भी उसे अपने स्वतंत्र विचारों से बंचित न कर सकता था। उसके धर्म और अपने सक्ल्प से च्यत करने की नमता किसी मे न थी। वास्तव मे पुरोहित हद धर्मी और प्रियधर्मी था। वह वर्तमान कालीन श्रावकों की भांति अनिश्चल, डरपोक या कातर न था, कि किसी के भय, लालच या रोव मे आकर धर्म-कर्म को तिलाञ्जली दे बैठे। आज तो वह स्थिति है कि प्रथम तो धर्म के प्रति श्रद्वा का भाव ही नहीं होता और यदि होता भी है तो इतना उयला कि जरा-सा संक्ट आते ही गफर हो जाता है। से स्वार्थ के लिए आज के श्रावक प्राय अपने विधर्मी।Page Navigation
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