Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-देवा अद्ह (मै०सं० ४।२।१३)। देवताओं ने दोहन (प्रपूरण) किया। गन्धर्वाप्सरसो अदुह (मै०सं० ४।२।१३)। गन्धर्व और अप्सराओं ने दोहन किया। विकल्प पक्ष में रुट् आगम नहीं है-अदुहत। उन्होंने दोहन किया। बहुलवचन से अत्-आदेश से अन्यत्र भी 'रुट' आगम होता है-अदश्रमस्य केतवः (ऋ० ११५०।३)। मैंने (प्रष्कण्व) इस सूर्य की किरणों को देखा है।
सिद्धि-(१) अदुह । दुह+लङ् । अट्+दुह+ल। अ+दुह्+झ। अ+दुह्+शप्+झ। अ+दुह+० अत । अ+दुह्+रुट्+अत । अ+दुह++अ० । अदुह्र।
यहां 'दुह प्रपूरणे' (अदा०उ०) धातु से लङ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से झ-प्रत्यय के अत-आदेश को 'रुट्' आगम होता है। लोपस्त आत्मनेपदेषु' (७।१।४१) से तकार का लोप होता है। विकल्प पक्ष में रुट्-आगम नहीं है-अदुहत।
(२) अदृशम् । दृश्+लुङ् । अट्+दृश्+। अ+दृश्+लि+मिप् । अ+दृश्+अड्+अम्। अ+दृश्+अ+रुट्+अम् । अ+दृश्+अ+र+अम् । अदृश्रम्।
यहां दृशिर् प्रेक्षणे (भ्वा०प०) धातु से लुङ्' प्रत्यय है। इरितो वा' (३।१।५७) से चिल' के स्थान में अङ्' आदेश होता है। तस्थस्थमिपां तान्तन्ताम:' (३।४।१०१) से मिप' के स्थान में 'अम्' आदेश है। इस सूत्र से बहुलवचन से इस 'अम्' को भी रुट' आगम होता है। बहुलवचन से ही दृश् धातु को ऋदृशोरङि गुणः' (७।४।१६) से प्राप्त गुण नहीं होता है। ऐस्-आदेशः
(६) अतो भिस ऐस्।६। प०वि०-अत: ५।१ भिस: ६१ ऐस् १।१। अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्य इति चानुवर्तते। अन्वय:-अतोऽङ्गाद् भिस: प्रत्ययस्य ऐस् ।
अर्थ:-अदन्ताद् अङ्गाद् उत्तरस्य भिस: प्रत्ययस्य स्थाने ऐसादेशो भवति।
उदा०-वृक्षैः । प्लक्षैः । अतिजरसैः ।
आर्यभाषा: अर्थ- (अत:) अकारान्त (अङ्गात्) अङ्ग से परे (भिस:) भिस् (प्रत्ययस्य) प्रत्यय के स्थान में (एस्) ऐस् आदेश होता है।
उदा०-वृक्षैः । वृक्षों के द्वारा। प्लक्षैः । प्लक्षों (पिलखण) के द्वारा। अतिजरसैः । जरा के विजेताओं के द्वारा।
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