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पंचभाषी पुष्पमाला
श्री सहजात्मस्वरूप शुद्ध चैतन्यस्वामी श्रीमद् श्री राजचन्द्रदेव को नमोनमः।
मंगलदायिनी
श्री जिनवाणी को नमस्कार सह त्रिकरणयोग से वंदना
ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य ऐसे मोक्ष के पाँच आचार जिसके आचरण में प्रवर्त्तमान हैं तथा अन्य भव्यजीवों को जो आचार में प्रवर्तित करते हैं ऐसे आचार्य (भावाचार्य) भगवान को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। द्वादशांग के अभ्यासी तथा उस श्रुत, शब्द, अर्थ तथा रहस्य का अन्य भव्य जीवों को अध्ययन करानेवाले उपाध्याय भगवान (श्रुतरसिक) शंकाशल्य को दूर करनेवाले, अभिप्राय की भ्रांति को हरनेवाले श्रुतदायक को अंतर के बहुमान सहित नमस्कार हो... ! नमस्कार हो... !!
"उस पद में जिनका निरंतर लक्षरूप प्रवाह है उन सत्पुरुषों को नमस्कार।"
जिनभारती