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पंचभाषी पुष्पमाला ३५. पैर रखने में पाप है, दृष्टिपात करने में ज़हर है
और सर पर मौत खड़ी है यह सोचकर आज के दिन में प्रवेश करो। ३६. यदि तुम्हें आज अघोर कर्म में प्रवृत्त होना पड़
रहा हो तो तुम राजपुत्र हो तो भी भिक्षाचार को मान्य करके आज के दिन में प्रवेश करो। (अर्थात् त्याग करके भिक्षुक - भिखारी - बनना बेहतर है, अनुचित कर्म करना नहीं। -
सम्पादक) ३७. यदि तुम भाग्यवान हो तो अपने सद्भाग्य के
आनंद में औरों को भी भाग्यवान बनाओ, परंतु यदि तुम दुर्भागी हो तो औरों का बुरा करने के विचार का त्याग करके आज के दिन में प्रवेश
करो। ३८. यदि तुम धर्माचार्य हो तो अपने अनाचार के प्रति
कटाक्षदृष्टि करके आज के दिन में प्रवेश करो।
३९. यदि तुम अनुचर हो तो सर्वाधिक प्रिय ऐसे शरीर
का पालनपोषण करनेवाले अपने स्वामी के प्रति प्रामाणिकता, विश्वसनीयता, कृतज्ञता का विचार करके आज के दिन में प्रवेश करो।
छ जिनभारती