Book Title: Panchbhashi Pushpmala Hindi
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ಪಂಚಭಾಷಿ. ಪುಷ್ಪಮಾಲಾ पुण्यभागी श्रीमद् राजचन्द्रजी कृत MTE पंचभाषी पुष्पमाला Panchabhashi Pushpamala by Srimad Rajchandraji পংচভাষী পুষ্পমালা Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीत चुकी है रात, आया है प्रभात, मुक्त हुए है निद्रा से । प्रयत्न करें (अब) भाव-निद्रा को टालने का। वित्रत दीर्घ, संक्षिप्त या क्रमानुक्रम किसी भी स्वरूप में मेरे द्वारा __ कही गई, पवित्रता के पुष्पों से आवृत्त (Dथी हुई) इस माला का प्रभात या संध्या के समय अथवा अन्य अनुकूल निवृत्ति में चिंतन मनन करने से मंगलदायक होगा । विशेष क्या कहँ ? “आप की आत्मा का इससे कल्याण हो, आप को ज्ञान, शांति तथा आनंद प्राप्त हो, आप परोपकारी, दयावान, ज्ञानवान, क्षमावान, विवेकशील एवं बुद्धिमान बनें ऐसी शुभयाचना अर्हत् भगवान के पास करते हुए इस पुष्पमाला को पूर्ण करताहूँ।” - श्रीमद् राजचन्द्रजी Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभातकाल के, समग्र जीवनकाल के प्रेरक पथप्रदर्शक प्रज्ञापुष्पों की पंचभाषी पुष्पमाला (हिन्दी पुष्प) बालज्ञानी श्रीमद राजचन्द्रजी प्राक्कथन पू. साध्वीश्री भावप्रभाश्रीजी परिकल्पना-सम्पादन-अनुवादन प्रा. प्रतापकुमार ज. टोलिया श्रीमती सुमित्रा प्र. टोलिया (सम्पादक, सप्तभाषी आत्मसिद्धि) जिनभारती वर्धमान भारती इन्टरनेशनल फाउन्डेशन प्रभात कोम्पलेक्स, के. जी. रोड, बेंगलोर ५६० ००९ १ जिनभारती Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Panchabhashi Pushpamala (Hindi) by Srimad Rajchandraji - (Philosophy) पंचभाषी पुष्पमाला (हिन्दी पुष्प) श्रीमद् राजचन्द्रजी रचित परिकल्पना-सम्पादन-अनुवाद प्रा. प्रतापकुमार ज. टोलिया, श्रीमती सुमित्रा प्र. टोलिया प्रकाशकः जिनभारती वर्धमान भारती इन्टरनेशनल फाउन्डेशन प्रभात कोम्पलेक्स, के. जी. रोड, बेंगलोर ५६० ००९ मूल्यः अलग प्रति रु.५/- (लागत रु.९/-) संयुक्त प्रति रु. ३६/- (लागत रु.५४/-) प्रकाशन वर्षः २००६-२००७ आवृत्तिः प्रथम, प्रतियाँ: १,000 स्वाधिकारः 'जिनभारती' पूर्व जानकारी के पश्चात्, विश्व-प्रसारार्थ सभी को प्रकाशन की अनुमति । टाईपसेटिंग एवं मुद्रणः सी.पी.इनोवेशन एवं इम्प्रिन्ट, बेंगलोर विशेष प्रार्थनाः इस पवित्र कृति-माला को प्रेमादर से सम्हालें। ____ फैंक देकर या नीचे रखकर अशातना न करें। क जिनभारती के Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला सम्पादकीयः पंचभाषी पुष्पमाला एक परम आत्मज्ञ का अनूठा उपहार पूर्वप्रज्ञा का स्पष्ट प्रत्यक्ष प्रमाण - परम कृपालु देव की दस वर्ष की आयु में निष्पन्न, प्रज्ञा-पुष्पों से पुष्पित यह 'पुष्पमाला'! अपने अनेक जन्मों के ज्ञान-निष्कर्ष एवं सहजसुंदर-सरल-निश्छल जीवन-दर्शन की परिचायक, सात वर्ष की आयु के पूर्वजन्म-'जातिस्मृति'-ज्ञान की फलश्रुति प्रदायक, इस परम आत्मज्ञ प्रज्ञापुरुष के उपकार-उपहार वत् नित्य-जीवन जीने की प्रायोगिक क्रम-माला !! आठ वर्ष की आयु में लिखित कविता आदि के बाद लिखी गई यह कैसी अनूठी कृति! आबाल-वृद्ध, अनपढ़-विद्वान्, गृहस्थ-त्यागीजन - सभी के लिए कितनी मधुर मंजुल सरल प्रांजल जिनभारती के Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला भाषा-परिभाषा में दिनभर-जीवनभर का, सतत जगाए रखनेवाला यह मार्गदर्शन, दिशा-दर्शन!!! बहे जा रहे वर्तमान के, 'आज' के जीवन के सुवर्ण-क्षणों को पकड़ लेने का, उनको संजोकर संवार लेने का, उनका श्रेष्ठतम उपयोग कर लेने का यहाँ सुंदर आयोजन, १०८ प्रज्ञा-पुष्पों के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। ऐसा अद्भुत, अनुपम, अनु-चिंतन कहाँ मिलेगा? ऐसी 'माला' भी तो कहाँ उपलब्ध होगी? इस पुष्पमाला ने अनेकों के जीवन पुष्प की सी सुहास से पुष्पित, अनुप्राणित कर दिये हैं। हम अल्पज्ञों पर भी इस छोटी सी कृति का महान उपकार है। अनेकों के, सर्वजन सामान्य के, जीवन को सुंदर, सफल, ऊर्ध्वगामी बनाने की इस में क्षमता है। परम कृपालु देव श्रीमद् राजचंद्रजी की 'मोक्षमाला-भावनाबोध', 'आत्मसिद्धि शास्त्र', 'वचनामृत' आदि परम उपकारक प्रज्ञा-कृतियों में यह 'पुष्पमाला' प्रथम गिनी जाएगी। जन-जन तक, गुजरात बाहर, भारतभर में ही नहीं विश्वभर में यह पहँचनी चाहिए, विश्वसमस्त की भाषाओं में यह वीतराग-वाणी महकनी चाहिए, अनुगूंजित होनी छु जिनभारती Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला चाहिए, अनूदित होनी चाहिए। अशान्त, पथभ्रान्त विश्व के लिए इस में शान्ति एवं परम प्रशान्ति की गुरुचाबी है। वर्तमान के सत्पुरुषों-परमगुरुजनों की यह मनीषा, भावना, प्रेरणा है। ___ श्रीमद् राजचन्द्रजी की आत्मज्ञान के सर्वोच्च सुवर्ण-शैल ऐसी चिरंतन अनुपम कृति 'श्री आत्मसिद्धि शास्त्र' को स्वरस्थ करने, गाने, रिकार्ड करने का हमें ३१ वर्ष पूर्व सौभाग्य प्राप्त हुआ। फिर उनके एवं अनेक वर्तमान परमपुरुषों के परम अनुग्रहरूप से फिर इस कृति को 'सप्तभाषी आत्मसिद्धि' शीर्षक ग्रंथरूप में भी संपादित करने का भी हमें विशेष सौभाग्य उपलब्ध हुआ। 'सप्तभाषी आत्मसिद्धि' ग्रंथ के सृजन की एवं श्रीमद्जी की सर्वोपकारक वीतराग-वाणी को विश्वभर में प्रसारित करवाने की उपर्युक्त सर्वाधिक प्रेरणा थी - 'सद्गुरु राज विदेह के चरणों में पराभक्तिवश आत्मसमर्पण करनेवाले', हंपीकर्णाटक के श्रीमद् राजचन्द्र आश्रमस्थ गुरुदेव श्री सहजानंदघनजी (भद्रमुनि) की। उनके शीघ्र जीवनोपरान्त रुका हुआ 'सप्तभाषी आत्मसिद्धि' का सम्पादन-प्रकाशन करवाने का कसौटीपूर्ण महत् * जिनभारती Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला कार्य संपन्न करवाया - अनेक प्रकार की सहायतापूर्वक उक्त ग्रंथ का पुरोवचन-आलेख-प्रदाता विदुषी सुश्री विमलाताई ठकार ने, जिनकी श्रीमदजी को आत्मसात् करानेवाली पुस्तक 'अप्रमादयोग' - Yoga of Silence - एक 'मील का पत्थर' सिद्ध हई है। बरसों पूर्व विमलादीदी के साथ आयोजित Selected works of Srimad Rajchandra की अंग्रेजी ग्रंथ आयोजना तो इस अल्पात्मा के प्रमाद एवं अन्य प्रवृत्ति-सृजनों के बीच से सम्भव हो तब हो, किन्तु इसी बीच, उनके एवं गुरुदेव श्री सहजानंदघनजी के साथ सुदीर्घ विमर्शों-आयोजनों के अनुसार श्रीमद्जी का अन्य साहित्य तो छोटी-छोटी बहुभाषी पुस्तकपुस्तिकाओं के रूप में प्रकाशित हो वह इस युग की माँग होने के कारण अत्यावश्यक एवं उपयोगी है। इन सारे सन्दर्भो में अब प्रथम अनूदित-संपादित हो रही है प्रत्येक के लिए - बहुजन सर्वसमाज के लिए परम उपकारक, उपयोगी, उपादेय कृति ऐसी शुद्ध, शांत, निर्दोष जीवनशैली सीखानेवाली, परमकृपालु देव श्रीमदजी की यह सरल रचना - 'पुष्पमाला'। यह पंचभाषी - पांच भाषाओं के स्वरूप में, परंतु अलग अलग प्रत्येक भाषी पुस्तिकाओं के रूप में भी प्रकाशित हो रही है। इस में मूल गुजराती, हिन्दी, पर जिनभारती Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला अंग्रेज़ी, बंगला एवं दक्षिण भारत के विशाल जैन साहित्य की प्रधान भाषा कन्नड़ - ये पांच भाषाएँ प्रथम पसन्द की गईं हैं। __ श्रीमदजी-सहजानंदघनजी का योगबल एवं अनुग्रह हमारा प्रेरक सम्बल है। सुश्री विमलाताई के इस आयोजन-अभियान को मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त हैं। श्रीमद्-साहित्य के अनेक अध्येता सत्पुरुषों-विद्वानों का हमें अनुमोदन प्राप्त हुआ है, तो एक स्वयं गहन स्वाध्यायी एवं साधनारत आत्मबंधु की अति विनम्र, सहज-सरल, उल्लसित भावयुक्त महती गुप्त अर्थसहाय भी। __ श्रद्धा है, सत्-पुरुषार्थ-जनित संकल्प है, कि यह 'पंचभाषी पुष्पमाला' भी श्रीमद्जी के योगबलअनुग्रहबल से इन छोटे हाथों के द्वारा अभूतपूर्व सफल प्रकाशन और प्रसारण पाएगी। यदि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का 'गीतांजलि' जैसा एवं आचार्य विनोबा भावे का 'गीताप्रवचन' जैसा प्रेरक साहित्य अनेक भाषाओं में फैल सकता है, तो श्रीमद् राजचंद्रजी का भी यह विश्वजनोपयोगी साहित्य विश्व-समस्त की भाषाओं में क्यों नहीं महकन लगे? इस सन्दर्भ में दृष्टव्य है श्री सहजानन्दघनजी RD जिनभारती Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला की व्यापक दृष्टि से प्रेरित हमारा लेख 'प्रतीक्षा है सूर्य की' जो कि प्रस्तुत और प्रकाशित हो चुका है हमारी सम्पादित द्वि-भाषी एवं 'सप्तभाषी आत्मसिद्धि' कृतियों में । इस विषय में सर्व मित्रों, अध्येताओं, श्रीमद्साधकों, पाठकों के सुझावों-सूचनाओं का स्वागत है । जानकारी हेतु इस लघुकृति का सामान्य- प्रारूपरूपरेखा भी सम्बद्ध है । अंत में विनम्र एवं कृतज्ञ भाव से हम स्वयं श्रीमद्जी द्वारा संस्थापित सुबोधक पुस्तकालय, खंभात के कर्णधारों के एवं पू. साध्वी श्री भावप्रभाश्रीजी के प्राक्कथन एवं 'पुष्पमाला एक परिचर्यन' का गुजराती से हिन्दी में अनुवाद प्रस्तुत करने की अनुमति के लिए, श्री कुरोराम बॅनर्जी तथा श्री प्रदीप कोठारी, कलकत्ता, एवं कन्नड़ अनुवाद के लिए कु. एस्. चित्रा, बंगलोर के हम आभारी हैं। सुंदर मुद्रण के लिए हमारे मित्र मुद्रकों एवं अनेक प्रकार से इस कार्य में सहयोग देनेवाले अनेक मित्रों के भी हम आभारी हैं। भावनगर के श्री महेन्द्रभाई शाह एवं अहमदाबाद के श्री चीमनभाई लालभाई शाह आदि को तो हम कैसे भूल सकते हैं? विद्वद्वर्य श्री वसंतभाई जिनभारती - Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला खोखाणी के प्रास्ताविक पुरोवचन के लिए हम उनके अत्यन्त ही आभारी हैं। सुज्ञजनों के सुझावों की प्रतीक्षा सह - प्रा. प्रतापकुमार टोलिया श्रीमती सुमित्रा प्र. टोलिया सम्पादक बेंगलोर, ज्ञानपंचमी : २७.१०.२००६ जिनभारती Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला १० पुरोवचन परम विदुषी पू. साध्वीश्री भावप्रभाश्रीजी द्वारा परम कृपालु देव श्रीमद् राजचन्द्रजी की बाल्यावस्था की अनुपमकृति “पुष्पमाला'' का बहुमूल्य विवेचन "पुष्पमाळा - एक परिचर्यन' शीर्षक लघु पुस्तिका में किया गया है। उस का हिन्दी अनुवाद भी इस "पंचभाषी पुष्पमाला'' के विस्तृत ग्रंथ में समाविष्ट किया जा रहा है। निश्चय ही "पंचभाषी पुष्पमाला'' मुमुक्षु जगत् के लिए अत्यंत ही उपयोगी और उपकारक प्रकाशन बना रहेगा इस में कोई संदेह नहीं धर्म यह तो जीवन जीने की कला है। ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, वीर्याचार और तपाचार इस प्रकार पंचाचार रूप जैनधर्म का स्वरूप है। इन सभी में “आचार'' यह महत्त्व का शब्द है। तीर्थंकरों ने आचार के नियम बांध दिए हैं। विविध भूमिका पर अपेक्षित आचार-संहिता यह जैनधर्म का प्रसिद्ध प्रथम आगम “आचारांग सूत्र' है, जिसमें भगवान महावीर ने साधक जीवन की सफलता हेतु एक * जिनभारती Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला मार्गदर्शिका निश्चित कर दी है। क्या करना ? क्या नहीं करना ? क्या खाना? क्या नहीं खाना? कैसे जीना ? कैसे नहीं जीना ? कौन सी प्रवृत्ति करनी ? कौनसी नहीं करनी? कैसे बोलना ? कैसे नहीं बोलना ? श्रावक या साधु जीवन में कैसा व्यवहार करना - कैसा नहीं करना ? ये सारी बातें अंततोगत्वा मुमुक्षुत्व और मोक्षमार्ग की ओर ही ले जाती हैं। ११ इस प्रकार श्रीमद् राजचन्द्रजी ने जीवन की किसी भी भूमिका पर स्थित मुमुक्षु, त्यागी या धर्माचार्य, राजा या रंक, वकील या कवि, धनवान या कारीगर, अधिकारी या अनुचर, कृपण या पहलवान, बालकयुवान या वृद्ध, स्त्री- राजपत्नी या दीनजनपत्नी, दुराचारी या दुःखी, कोई भी धंधार्थी हो, वह किसी भी धर्म में मानता हो, उसे प्रतिदिन आज का दिवस - सफल करने के लिए अपना आज का कर्त्तव्य क्या ? इस बात की स्पष्ट क्रममालिका का ग्रथन इस पुष्पमाला में अद्भुत रूप से किया है। इसीलिए ही पू. महात्मा गाँधीजी ने कहा है कि, "जिसे आत्मक्लेश टालना है, जो अपना कर्त्तव्य जानने के लिए उत्सुक है, उसे श्रीमद् के लेखों में से बहुत कुछ मिल जाएगा ऐसा मुझे विश्वास है, फिर चाहे वह हिन्दु हो या अन्य धर्मावलंबी हो । " जिनभारती Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला "आज की आचारसंहिता' और 'नीतिबोध'' के ग्रंथ जैसी पुष्पमाला के विषय में पू. गाँधीजी ने पंडितश्री सुखलालजी को कहा था कि, "अरे! यह पुष्पमाला तो पुनर्जन्म की साक्षी है !'* सर्वजन को हितकारक एवं सर्वजन को सुखदायक इस पुष्पमाला की सुगन्ध बहुजन समाज तक पहुँचे यह बहुत बड़े जनहित की बात है। पुष्पमाला के इस व्याप को दूर-सुदूर फैलाने के आशय से मूल गुजराती के उपरान्त हिन्दी मूल (तथा भावानुवादसह) एवं अंग्रेजी, कन्नड़, बंगला में अलग अलग इस प्रकार चार अन्य भाषाओं में प्रकाशन यह सत्धर्म प्रसार की दिशा का महत्त्व का कदम है। आत्मार्थी मुमुक्षु भाई श्री प्रतापभाई टोलिया एवं सुश्री सुमित्राबेन टोलिया ने इस उमदा कार्य को सिद्ध करने में अत्यंत कष्ट उठाकर प्रेमपरिश्रम किया है जिस कारण से वे दोनों अभिवादन एवं अभिनंदन के अधिकारी हैं। "सप्तभाषी आत्मसिद्धि'' के बाद "पंचभाषी पुष्पमाला'' यह उनका महत्त्व का * "रत्नकरण्ड श्रावकाचार", "सागार धर्मामृत'', "अणागारधर्मामृत' आदि भी अन्य महत्त्वपूर्ण आचार-सूचक ग्रन्थ हैं। कि जिनभारती Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला योगदान है। उनको धन्यवादसह भूरि भूरि अनुमोदना । अस्तु। ___"सत्पुरुषों का योगबल जगत् का कल्याण करे।" - वसंतभाई खोखाणी २९.११.२००६ 'ओजस्', २ - गुलाबनगर, रैया रोड़, राजकोट ३६० ००७ * जिनभारती Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला १४ श्रीमद् राजचंद्रजी द्वारा दस वर्ष की बालआयु में प्रणीत पुष्पमाला प्राक् कथन इस पुष्पमाला में परमात्मा ने धर्म की विधि. अर्थ की विधि, काम की विधि तथा मोक्ष की विधि पर प्रकाश डाला है। इस में उनकी प्रभुता की प्रतिभा झलक रही है। पुष्पमाला का प्रत्येक वचन मोहनीय को टालने का सामर्थ्य रखता है। उपयोगपूर्वक अभ्यास करने से हम अवश्य मोह की मंदता का लाभ प्राप्त कर सकते हैं ऐसी निःशंक श्रद्धा को ये वचन जन्म देते हैं। ॐ जिनभारती Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ पंचभाषी पुष्पमाला पुष्पमाला राय से लेकर रंक और आबालवृद्ध, सभी मनुष्यों के लिए, अरे! धर्माचार्य को भी, परभव श्रेयस्कर धर्मनीति का निःस्वार्थरूप से उपदेश दिया है। यह हमारे हृदय में जगदगरु के रूप में (उनका) परिचय करवाती है। यह पुष्पमाला गुलाब के फूल से भी अधिक सुवास देनेवाले गुणसौरभ से भरी हुई है। इसकी शैली अपूर्व है। इसके वचन सूत्रात्मक हैं, जिसमें आगम का सार आ जाता है। प्रथम त्यागी से लेकर प्रत्येक भूमिकावाले मनुष्य के पास खड़े रहकर आत्मीयतापूर्वक ये महापुरुष समझा रहे हों ऐसी रोचक एवं जागृतिप्रेरक (इसकी) शैली है। यह सरल, सहजगम्य भाषा की छु जिनभारती Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ पंचभाषी पुष्पमाला मधुरता, मुखाकृति की सौम्यता, ज्ञान की गंभीरता, अंतरात्मा की निर्दोषता और देखते ही मन को हर ले ऐसी महात्म्यवान है। अगर हम अवगाहन कर सकें तो इस पुष्पमाला में छः पद की सिद्धि का मार्मिक स्पष्टीकरण भी समाविष्ट हआ है। _इस माला में आज की सुबह-दोपहर-शाम की दिनचर्या का आयोजन समझाया गया है। तदुपरांत, जीवन से संबंधित प्रत्येक प्रवृत्ति या जीवन की आवश्यकताएँ जैसे की आहार, निद्रा, आराम, आमोदप्रमोद आदि के विषय में नए कर्मबंध न हों ऐसी दिव्य दृष्टि प्रदान की है। यह हमें मन, वचन, काया के तीन दंडों से कैसे निवृत्त होना यह समझाती है। उसी प्रकार आत्मकल्याण, सुख के परम साधन, सत्संग की प्रेरणा देती है। __ प्रभु की वैराग्यपूर्ण भक्ति, पुनर्जन्म में विश्वास, नीति, सदाचरण, अवैर, क्षमा, संतोष, निरभिमानिता, दया, इन्द्रियदमन, परोपकार, शील, सत्य, विवेक आदि आत्महितकारी विषयों की सुदृढ़ता करवाती है। जिनभारती Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ पंचभाषी पुष्पमाला अतः आइए हम उसका लक्षपूर्वक मनन करें । "दस वर्षे रे धारा उल्लसी .. " वह ज्ञानधारा प्रवाहित हुई - शब्दों के द्वारा । उसमें निमज्जन करें... डूब जाएँ... इस माला में परमात्मा आज के ही दिन का कर्त्तव्य निर्दिष्ट कर के, उसी के द्वारा समस्त जीवन का कर्त्तव्य निर्दिष्ट कर दिया है और यही उनकी खूबी है । इस माला के वचनों के मनन के हेतु, परिचर्यन के हेतु, श्री वचनामृतजी ग्रंथ का आधार लिया है। परमात्मा ने बाल्यवय में जो प्रौढ़ विचारणा तथा सूक्ष्मबोध दिया है वैसा ही अविरोधरूप से सूक्ष्मबोध, विस्तारपूर्वक मुमुक्षु भाइयों के पत्रों का समाधान करते हुए प्ररूपित किया है । श्री वचनामृतजी ग्रंथ के आदि, मध्य तथा अंत के कुछ वाक्यों में तथा भावों में कुछ अंशों में साम्य दृष्टिगत होता है। उसमें गहराई में जाने से आश्चर्यमग्न हो जाते हैं कि अहो! जन्मज्ञानी ! इतनी लघु आयु में आपने पुष्पमाला में छोटे छोटे वाक्यों में कितना विस्तृत श्रुतसागर समाविष्ट कर दिया है !! प्रभु के घर का यह प्रसाद, उसका अभ्यास करनेवालों के लिए आत्मोन्नति के चाहक ऐसे हम जिनभारती Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला १८ लोगों के लिए शीघ्र प्रशस्त क्रम में ले जानेवाला बने, योजक बने ऐसी परमात्मा को प्रार्थना है । साध्वीश्री भावप्रभाश्री वि. सं. २०५५ श्री स्तंभतीर्थ, श्री सुबोधक पाठशाला पुस्तकशाला (इस पुस्तक में "अवतरण" चिह्न में दिए गए वचन 'श्रीमद् राजचंद्र वचनामृतजी' ग्रंथ में से हैं ।) - सौजन्यः ऋणस्वीकार : श्री सुबोधक पुस्तकशाला, श्री स्तंभतीर्थ, खंभात । हिन्दी अनुवाद : श्रीमती सुमित्रा प्र. टोलिया, बेंगलोर । जिनभारती Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला श्री सहजात्मस्वरूप शुद्ध चैतन्यस्वामी श्रीमद् श्री राजचन्द्रदेव को नमोनमः। मंगलदायिनी श्री जिनवाणी को नमस्कार सह त्रिकरणयोग से वंदना ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य ऐसे मोक्ष के पाँच आचार जिसके आचरण में प्रवर्त्तमान हैं तथा अन्य भव्यजीवों को जो आचार में प्रवर्तित करते हैं ऐसे आचार्य (भावाचार्य) भगवान को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। द्वादशांग के अभ्यासी तथा उस श्रुत, शब्द, अर्थ तथा रहस्य का अन्य भव्य जीवों को अध्ययन करानेवाले उपाध्याय भगवान (श्रुतरसिक) शंकाशल्य को दूर करनेवाले, अभिप्राय की भ्रांति को हरनेवाले श्रुतदायक को अंतर के बहुमान सहित नमस्कार हो... ! नमस्कार हो... !! "उस पद में जिनका निरंतर लक्षरूप प्रवाह है उन सत्पुरुषों को नमस्कार।" जिनभारती Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला अभ्यर्थना ॐ नमः श्री सत् इस विषम काल में परम शांति के धामरूप बालवीर, ज्ञानावतार प्रभु अनेक जीव अलख समाधि प्राप्त करें ऐसी करुणा भावना का चिंतन करते हुए - अनेक पूर्वभवों से चिंतन करते हुए इस भरतक्षेत्र में सूर्य से अधिक प्रकाशमान, प्रगट देहधारी परमात्मा के रूप में अवतरित हुए हैं। उस दिव्यज्ञान किरण के तेजप्रभाव से जगत के जीवों का मोहरूपी अंधकार दूर करने हेतु तथा दुर्लभ मानवजीवन के मुख्य कर्त्तव्य को (वचन ६७०)... ___ “सर्व कार्य में कर्त्तव्य केवल आत्मार्थ है...' यह समझाने हेतु, आत्मा को पवित्रता के पुष्पों से, आत्मगुणों को प्रफल्लित करने हेतु, निर्मल ज्ञानधारा के प्रवाह से प्रत्येक को भूमिकाधर्म से अवगत कराकर ऊर्ध्वगति के परिणामी बनाने हेतु, मंगलदायक एक सौ आठ सुवासपूर्ण वचनरूपी पुष्पों की मोक्षगामिनी माला दस वर्ष की आयु में मुमुक्षुओं के कंठ में आरोपित करते हैं। करुणा की वह मालिनी मेरे हृदय पर शोभायमान हो यही प्रार्थना है। हे नाथ! आपकी सविशेष दया के अंकुर से मेरी विनंती सफल हो यही इस बालक की आर्त्त याचना है...! छुप जिनभारती Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૧ पंचभाषी पुष्पमाला ॐ सत् पुष्पमाला बालज्ञानी श्रीमद् राजचन्द्रजी द्वारा प्रज्ञा-पुष्पित (प्रातःकाल को पावन करनेवाले कुछ पुष्प) १. बीत चुकी है रात, आया है प्रभात, मुक्त हुए हैं निद्रा से | प्रयत्न करें (अब) भाव निद्रा को टालने का। २. दृष्टिपात करें - व्यतीत रात्रि और विगत जीवन पर। ३. आनन्द मनाएँ सफल बने हुए समय के लिए और आज का दिन भी सफल बनाएँ। निष्फल बीते हुए दिन के लिए पश्चात्ताप करके निष्फलता को विस्मृत करें। ४. क्षण क्षण बीतते हुए अनंतकाल व्यतीत हुआ, फिर भी सिद्धि प्राप्त नहीं हुई! ५. यदि तुम्हारे द्वारा एक भी कृत्य सफल नहीं बन पाया हो, तो पुनः पुनः लज्जा अनुभव करें। एक जिनभारती क Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ રર पंचभाषी पुष्पमाला ६. यदि तुम्हारे द्वारा अघटित कृत्य हुए हों तो लज्जित होकर के मन, वचन और काया के योग से ऐसा नहीं करने की प्रतिज्ञा धारण करें। ७. यदि तुम संसार समागम में स्वतंत्र हो तो अपने आज के दिन को निम्नानुसार विभागित करें: (१) १ प्रहर - भक्तिकर्तव्य (२) १ प्रहर - धर्मकर्तव्य (३) १ प्रहर - आहार प्रयोजन (४) १ प्रहर - विद्या प्रयोजन (५) २ प्रहर - निद्रा (६) २ प्रहर - संसार प्रयोजन ८ प्रहर यदि तुम त्यागी हो तो त्वचारहित वनिता के स्वरूप का चिंतन कर के संसार की ओर दृष्टि करना। ९. यदि तुम्हें धर्म का अस्तित्व अनुकूल दिखाई नहीं देता हो तो निम्न कथन पर चिंतन करो:(१) तुम जो, जिस स्थिति को, भुगत रहे हो वह किस प्रमाण से? (२) आगामी कल की बात क्यों जान नहीं सकते हो? ७ जिनभारती Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ पंचभाषी पुष्पमाला (३) तुम जो चाहते हो वह तुम्हें क्यों नहीं मिलता है ? (४) चित्रविचित्रता का प्रयोजन क्या है? १०. यदि तुम्हें धर्म का अस्तित्व प्रमाणभूत प्रतीत होता हो और उसके मूल तत्त्व में संदेह - आशंका हो तो नीचे कहता हूँ : ११. सर्वात्म में, सभी प्राणियों में समदृष्टि, - १२. अथवा, किसी प्राणी को जीवितव्य रहित प्राणरहित - न करो, उस की क्षमता से अधिक काम उसके पास से मत लो। किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो । - १३. अथवा सत्पुरुषों ने जिस मार्ग का अनुसरण किया, उस मार्ग को ग्रहण करो । १४. मूल तत्त्व में कहीं भी भेद नहीं है, भेद केवलमात्र दृष्टि में है, ऐसा मानकर और आशय को समझकर पवित्र धर्म में प्रवर्तन करो । १५. तुम चाहे किसी भी धर्म को मानते हो, उसका मुझे कोई पक्षपात नहीं है। कहने का तात्पर्य केवल इतना ही है कि जिस मार्ग से संसारमल जिनभारती Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला ર૪ नष्ट हो उस भक्ति, उस धर्म और उस सदाचार का तुम अनुसरण - सेवन - करो। १६. तुम चाहे कितने भी परतंत्र क्यों न हो, फिर भी मन से पवित्रता का विस्मरण किए बिना आज के दिन को रमणीय बनाओ। १७. आज यदि तुम दुष्कृत की ओर जा रहे हो तो मुत्यु का स्मरण करो। १८. यदि तुम आज किसी को दुःख देने के लिए तत्पर हुए हो तो अपने दुःख-सुख की घटनाओं की सूची का स्मरण कर लेना। १९. राजा हो या रंक - चाहे जो भी हो, किंतु यह विचार करके सदाचार के मार्ग पर आना कि इस काया के पुद्गल थोड़े समय के लिए केवल साड़े तीन हाथ भूमि माँगनेवाले हैं। २०. तुम राजा हो तो चिंता नहीं, परंतु प्रमाद मत करो, क्योंकि तुम सर्वाधिक नीच, अधम से अधम, व्यभिचार का, गर्भपात का, निर्वंश का, चांडाल का, कसाई का तथा वेश्या का ऐसा कण खाते हो। तो फिर...? @ जिनभारती Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૭ पंचभाषी पुष्पमाला २१. प्रजा के दुःख, अन्याय और कर इत्यादि की जाँच कर के आज उन्हें कम करो। तुम भी, हे राजन् ! काल के घर आए हुए एक अतिथि हो ! २२. यदि तुम वकील हो तो इस से आधे विचार का मनन कर लो। २३. यदि तुम श्रीमंत हो तो पैसों के उपयोग के विषय में विचार करो। पैसे कमाने का प्रयोजन खोज कर आज बताओ। २४. धान्यादिक व्यापार में होनेवाली असंख्य हिंसा का स्मरण करके न्यायसंपन्न व्यापार में आज अपने चित्त को लगाओ। २५. यदि तुम कसाई हो तो अपने जीव के सुख का विचार करके आज के दिन में प्रवेश करो। २६. यदि तुम समझदार बालक हो तो विद्या एवं आज्ञा की ओर दृष्टि करो। २७. यदि तुम युवान हो तो उद्यम और ब्रह्मचर्य के प्रति दृष्टि करो। २८. यदि तुम वृद्ध हो तो मृत्यु की ओर दृष्टि करके आज के दिन में प्रवेश करो। * जिनभारती Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ पंचभाषी पुष्पमाला २९. यदि तुम स्त्री हो तो अपने पति के प्रति अपने धर्मकर्तव्य का स्मरण करो; अगर दोष हए हों तो क्षमायाचना करो तथा परिवार की ओर दृष्टि करो। ३०. यदि तुम कवि हो तो असंभवित प्रशंसा का स्मरण करते हुए आज के दिन में प्रवेश करो। ३१. यदि तुम कृपण हो तो - (अपूर्ण वाक्य का अभिप्रेत अर्थ : कृपण, कंजूस, लोभी व्यक्ति में धर्म-प्राप्ति की, ज्ञानी का धर्मोपदेश ग्रहण करने की, पात्रता एवं क्षमता नहीं होती। - सम्पादक) ३२. यदि तुम अमलमस्त (मदोन्मत्त सत्ताधीश) हो तो नेपोलियन बोनापार्ट का (उसकी) दोनो स्थितियों में स्मरण करो। ३३. यदि बीते हए कल का कोई कार्य अपूर्ण रहा हो तो उसे पूर्ण करने का सुविचार करके आज के दिन में प्रवेश करो। ३४. आज यदि कोई कार्य आरम्भ करने की इच्छा हो तो विवेकपूर्वक समय, शक्ति तथा परिणाम का विचार करके आज के दिन में प्रवेश करो। छुप जिनभारती Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૭. पंचभाषी पुष्पमाला ३५. पैर रखने में पाप है, दृष्टिपात करने में ज़हर है और सर पर मौत खड़ी है यह सोचकर आज के दिन में प्रवेश करो। ३६. यदि तुम्हें आज अघोर कर्म में प्रवृत्त होना पड़ रहा हो तो तुम राजपुत्र हो तो भी भिक्षाचार को मान्य करके आज के दिन में प्रवेश करो। (अर्थात् त्याग करके भिक्षुक - भिखारी - बनना बेहतर है, अनुचित कर्म करना नहीं। - सम्पादक) ३७. यदि तुम भाग्यवान हो तो अपने सद्भाग्य के आनंद में औरों को भी भाग्यवान बनाओ, परंतु यदि तुम दुर्भागी हो तो औरों का बुरा करने के विचार का त्याग करके आज के दिन में प्रवेश करो। ३८. यदि तुम धर्माचार्य हो तो अपने अनाचार के प्रति कटाक्षदृष्टि करके आज के दिन में प्रवेश करो। ३९. यदि तुम अनुचर हो तो सर्वाधिक प्रिय ऐसे शरीर का पालनपोषण करनेवाले अपने स्वामी के प्रति प्रामाणिकता, विश्वसनीयता, कृतज्ञता का विचार करके आज के दिन में प्रवेश करो। छ जिनभारती Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला ४०. यदि तुम दुराचारी हो तो अपने आरोग्य, भय, परतंत्रता, स्थिति और सुख इन सब का विचार कर के आज के दिन में प्रवेश करो। ४१. यदि तुम दुःखी हो तो (आज की) आजीविका के लिए पर्याप्त हो उतनी ही आशा रखकर आज के दिन में प्रवेश करो। ४२. धर्मकरणी के लिए अवश्य समय प्राप्त करके आज के दिन की व्यवहारसिद्धि में तुम प्रवेश करो। ४३. कदापि प्रथम प्रवेश के समय अनुकूलता न हो तो भी प्रतिदिन बीत रहे दिन के स्वरूप के विषय में विचार कर के आज किसी भी समय उस पवित्र वस्तु का मनन करना । ४४. आहार, विहार, निहार विषयक अपनी प्रक्रिया को जाँच करके आज के दिन में प्रवेश करना । ४५. यदि तुम कारीगर हो तो आलस्य तथा शक्ति के दुरुपयोग के विषय में विचार करके आज के दिन में प्रवेश करो। ४६. तुम किसी भी प्रकार के व्यवसाय में हो, परंतु आजीविका हेतु अन्यायसंपन्न द्रव्य उपार्जन मत करना। जिनभारती की Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९ पंचभाषी पुष्पमाला ४७. इस स्मृति को ग्रहण करने के पश्चात् शौचक्रियायुक्त होकर, भगवद्भक्ति में लीन होकर क्षमापना की याचना करना। ४८. संसार प्रयोजन में यदि तुम अपने हित के हेतु किसी समुदाय विशेष का अहित कर देते हो, तो ऐसी प्रवृत्ति का त्याग करना। ४९. जुल्मी, कामी, अनाड़ी को यदि तुम उत्तेजन देते हो तो ऐसी प्रवृत्ति का त्याग करना। ५०. कम से कम अर्ध प्रहर धर्मकर्त्तव्य तथा विद्यासंपत्ति में व्यतीत करना । ५१. जीवन, आयुष्य, पुण्यादि अति अल्प हैं और जंजाल (झंझट) लंबी है; इसलिए उस जंजाल को संक्षिप्त कर दोगे - काट दोगे तो जीवन आत्मसुखमय दीर्घ प्रतीत होगा। ५२. स्त्री, पुत्र, परिवार, लक्ष्मी इत्यादि सर्व सुख तुम्हारे घर में हो तो भी उस सुख में गौण रूप से दुःख छिपा हुआ है, ऐसा मानकर आज के दिवस में प्रवेश करना। ५३. पवित्रता का मूल सदाचार है। ५४. मन को दोरंगी - चंचल - होने से बचाने हेतु - जिनभारती Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० पंचभाषी पुष्पमाला (प्रभुवचनों में, सत्पुरुष के गुणचिंतन में, . प्रभुभक्ति में, स्वाध्याय-ध्यान में, सत्कार्यों में लीन रहें।-सम्पादक) ५५. वचन शांत, मधुर, कोमल, सत्य एवं शुचितापूर्ण बोलने की सामान्य प्रतिज्ञा करके आज के दिन में प्रवेश करना। ५६. काया मलमूत्र का अस्तित्व है इसलिए "मैं इस कैसे अयोग्य प्रयोजन में (उसका उपयोग कर) आनंद मना रहा हँ?'' - ऐसा आज विचार करना। ५७. तुम्हारे हाथों किसी की आजीविका आज टूटनेवाली हो तो - (सूचित संकेतार्थ : स्वार्थ के कारण किसी की आजीविका तोड़े नहीं और नौकर आदि की गलती हुई हो तो प्रथम सीख से सुधारना, भय बताना, दया-चिंतन कर के अंत में निरुपाय हो तो ही किसी को नौकरी से विदा करना यह उचित व्यवहार नीति है। परंतु छोटे-से सामान्य अपराध के कारण से उसे नीतिविरुद्ध बड़ी सज़ा नहीं देना । यहाँ यह सारा सोच-विचार कर कदम उठाने का संकेत दिखता है। - सम्पादक) छु जिनभारतीय Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला ३१ ५८. आहारक्रिया में अब तुमने प्रवेश किया । मिताहारी अकबर सर्वोत्तम बादशाह माना गया। ५९. यदि आज तुम्हें दिन में सोने की इच्छा हो तो उस समय ईश्वर भक्ति परायण बनना अथवा सत्शास्त्र का लाभ ले लेना । ६०. मैं समझता हूँ कि ऐसा होना कठिन है, फिर भी अभ्यास सब का उपाय है । ६१. परापूर्व का चला आ रहा वैर अगर आज निर्मूल किया जा सके तो उत्तम है, नहीं तो उस विषय में सावधान रहना । ६२. उसी प्रकार नया वैर बढ़ाना मत, क्योंकि वैर करके कितने काल तक सुख भुगतना हे ? ऐसा विचार तत्त्वज्ञानी करते हैं । ६३. महारंभी हिंसायुक्त व्यापार में आज पड़ना पड़ रहा हो तो रुक जाओ ! (ऐसी प्रवृत्ति का त्याग करो ।) ६४. विपुल लक्ष्मी की प्राप्ति होती हो तो भी अगर अन्याय के कारण किसी के जीवन की हानि हो रही हो, तो रुक जाओ । जिनभारती Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला ३२ ६५. समय अमूल्य है ऐसा सोचकर आज के दिन के २,१६,००० विपल का उपयोग करो । ६६. वास्तविक सुख केवल विराग में है अतः जंजालमोहिनी के द्वारा आज अभ्यंतर मोहिनी में वृद्धि मत करना | ६७. अवकाश का समय हो तो पूर्वकथित स्वतंत्रता के अनुसार कार्य करना । ६८. किसी प्रकार का निष्पाप खेल अथवा अन्य कोई निष्पाप साधन आज के मनोरंजन के लिए खोजना | ("निर्दोष सुख, निर्दोष आनंद पाए चाहे कहीं से भी, वह दिव्य शक्तिमान (आत्मा) जिससे छूटे बंधन से सही । " - श्रीमद्जी) ७०. ६९. अगर सुयोजक कृत्य करने में प्रवृत्त होना हो तो आज विलंब करना उचित नहीं है, क्योंकि आज के समान मंगलदायक दूसरा कोई दिन नहीं है । यदि तुम अधिकारी हो तो भी प्रजाहित को मत भूलना, क्योंकि जिस शासक का ( राजा का ) नमक तुम खाते हो वह भी प्रजा का प्रिय सेवक है । जिनभारती Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला ३३ ७१. व्यावहारिक प्रयोजन में भी उपयोगपूर्वक विवेकवान रहने की सत्प्रतिज्ञा लेकर आज के दिवस में प्रवर्तित होना । ७२. सायंकाल होने के पश्चात् विशेष शांति धारण करना । ७३. आज के दिन में इन विषयों में यदि बाधा न आए तो ही वास्तविक विचक्षणता मानी जा सकती है :- १. आरोग्य, २ महत्ता, ३. पवित्रता, ४ . कर्त्तव्य | ७४. यदि आज तुम्हारे हाथों से कोई महान कार्य हो रहा हो तो तुम अपने सर्व सुखों का भी बलिदान दे देना । ७५. कर्ज़ नीच रज (क+रज) है, कर्ज़ यम के हाथों निष्पन्न हुई वस्तु है; (कर+ज); कर यह राक्षसी राजा का ज़ुल्मी कर उगाहनेवाला है। यदि यह है तो आज ही उससे मुक्त हो जाओ और नया लेना बंद करो । ७६. दिवस से संबंधित कृत्यों का लेखा-जोखा अब देख लो, उसके विषय में चिंतन ( आत्मनिरीक्षण, प्रतिक्रमण) कर लो। जिनभारती Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला ७७. सुबह के समय स्मृति दिलाई है फिर भी यदि कुछ अयोग्य हुआ हो तो पश्चात्ताप करो और शिक्षा (बोध) ग्रहण करो। ७८. यदि कोई परोपकार, दान, लाभ या परहित कर के तुम आए हो तो आनंद का अनुभव करो और निरभिमानी रहो। ७९. जाने-अनजाने में भी यदि कुछ विपरीत हुआ हो तो अब ऐसा काम मत करो। ८०. व्यवहार के विषय में नियम बना लेना और अवकाश के समय में संसार-निवृत्ति की खोज करना। ८१. जिस प्रकार आज के उत्तम दिन का आनंद तुमने प्राप्त किया है, उसी प्रकार संपूर्ण जीवन का आनंद प्राप्त करने के लिए तुम आनंदित हो जाओ तो ही इस - (- मनुष्य जन्म की सार्थकता है, तो ही इस लेखक - राजचन्द्र - को आनंद, संतोष होगा। संकेतार्थ | - सम्पादक) ८२. आज जिस क्षण तुम मेरी कथा का मनन कर रहे ॐ जिनभारती Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ पंचभाषी पुष्पमाला हो, उसे ही अपना आयुष्य समझकर सवृत्ति की ओर अभिमुख बनो। ८३. सत्पुरुष विदुरजी के कथन के अनुसार आज ऐसा कृत्य करो कि जिससे रात के समय तुम सुखपूर्वक सो सको। ८४. आज का दिन सुवर्ण का दिन है, पवित्र हे, कृतकृत्य होने योग्य है ऐसा सत्पुरुषों ने कहा है, अतः उसे मान्य करो। ८५. यथा संभव आज के दिन के संबंध में, स्वपत्नी के प्रति भी, कम विषयासक्त रहना। ८६. आत्मिक एवं शारीरिक शक्ति की दिव्यता का वह मूल है-यह ज्ञानीयों का अनुभवसिद्ध वचन है। ८७. तम्बाकू सूंघने जैसा छोटा व्यसन भी यदि हो, तो आज से उसका पूर्ण त्याग करो। नवीन व्यसन मत करो। ८८. इस प्रभात की वेला में देश, काल और मित्र इन सब के विषय में विचार सभी मनुष्यों के लिए स्वशक्ति अनुसार करना उचित है। ८९. आज कितने सत्पुरुषों का समागम हुआ? ॐ जिनभारती Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला आज वास्तविक आनंद-स्वरूप क्या हुआ ? ऐसा चिंतन विरल पुरुष करते हैं। ९०. आज तुम चाहे कितने भी भयंकर किंतु उत्तम कृत्य में यदि तत्पर हए हो तो नाहिंमत मत होना। ९१. शुद्ध सच्चिदानंद, करुणामय परमेश्वर की भक्ति तुम्हारे आज के सत्कृत्य का जीवन है। ९२. तुम्हारा, तुम्हारे परिवार का, मित्र का, पुत्र का, पत्नी का, मातापिता का, गुरु का, विद्वान का, सत्पुरुष का यथाशक्ति हित, सन्मान, विनय, लाभ का कर्तव्य यदि हुआ हो तो आज के दिन की वह सुगंध है। ९३. जिसके घर, आज का दिन क्लेशमुक्त, स्वच्छतायुक्त, शुचितासहित, संपसहित, संतोषसहित, सौम्यतासहित स्नेहसहित, सभ्यतासहित, सुखपूर्वक व्यतीत होगा, उसके घर में पवित्रता का निवास है। ९४. कुशल एवं आज्ञांकित पुत्र, आज्ञावलंबी धर्मयुक्त अनुचर, सद्गुणी सुंदरी, संप से भरा परिवार, सत्पुरुष के समान स्वयं की दशा जिस ॐ जिनभारती Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ पंचभाषी पुष्पमाला पुरुष की होगी उसका आज का दिन हम सब के लिए वंदनीय है। ९५. इन सब लक्षणों से युक्त होने के लिए जो पुरुष विचक्षणतापूर्वक प्रयत्न करता है, उसका दिन हम सब के लिए माननीय है। ९६. इससे विपरीतभावयुक्त व्यवहार जहाँ हो रहा हो वह घर हमारी कटाक्षदृष्टि की रेखा है। ९७. भले ही तुम अपनी आजीविका के जितना प्राप्त करते हो, परंतु यदि वह निरुपाधिमय हो तो उपाधिमय उस राजसुख की कामना करके अपने आज के दिन को अपवित्र मत करना । किसीने अगर तुम्हें कटुवचन कहा हो तो उस समय सहनशीलता (धारण करना) निरुपयोगी भी... ९९. दिन में हुई भूल के लिए रात के समय (अपने आप पर) हँस लेना, परंतु इस प्रकार फिर से हँसना न पड़े इस बात को लक्ष में रखना । १००. आज बुद्धिप्रभाव में कुछ वृद्धि की हो, आत्मिक शक्ति को उज्ज्वल बनाया हो, पवित्र जिनभारती Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला कृत्य की वृद्धि की हो तो- (लघुता धारण करना और उसे गुरुकृपा मानना)। १०१. आज अपनी किसी शक्ति का अयोग्य रूप से उपयोग मत करना, मर्यादालोपन से कुछ करना पड़े तो पापभीरु रहना। १०२. सरलता धर्म का बीजस्वरूप है। प्रज्ञा के द्वारा सरलता का सेवन किया गया हो तो आजका दिवस सर्वोत्तम है। १०३. हे स्त्री! (तुम) राजपत्नी हो या दीनजनपत्नी हो, मुझे उसकी कोई परवाह नहीं है। मर्यादापूर्वक व्यवहार करनेवाली नारियों की मैंने तो क्या, पवित्र ज्ञानियों ने भी प्रशंसा की है। १०४. सदगुणों के कारण यदि आप पर जगत का प्रशस्त मोह होगा तो हे नारी ! मैं आप को वंदन करता हूँ। १०५. बहुमान, नम्रभाव, विशुद्ध अंतःकरण से परमात्मा का गुणचिंतन, श्रवण, मनन, कीर्तन, पूजा-अर्चना इन सब की ज्ञानीपुरुषों ने प्रशंसा की है, अतः इन के द्वारा आज के दिवस को शोभायमान बनाएँ। कि जिनभारती Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला १०६. सत्शीलवान सुखी है, दुराचारी दुःखी है - यह बात यदि मान्य न हो तो इसी क्षण से लक्ष रखते हए इस बात पर विचार कर के देखो। १०७. इन सब का सरल उपाय आज बता देता हूँ कि दोषों को पहचान कर दोषों को दूर करें। १०८. दीर्घ, संक्षिप्त या क्रमानक्रम किसी भी स्वरूप में मेरे द्वारा कही गई, पवित्रता के पुष्पों से आवृत्त (Dथी हुई) इस माला का प्रभात या संध्या के समय अथवा अन्य अनुकूल निवृत्ति में चिंतन मनन करने से मंगलदायक होगा। विशेष क्या कहूँ? "आप की आत्मा का इससे कल्याण हो, आप को ज्ञान, शांति तथा आनंद प्राप्त हो, आप परोपकारी, दयावान, क्षमावान, विवेकशील एवं बुद्धिमान बने ऐसी शुभयाचना अर्हत् भगवान के पास करते हुए इस पुष्पमाला को पूर्ण करता हूँ।'' || ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।। एक जिनभारती Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचभाषी पुष्पमाला जिनभारती वर्धमान भारती इन्टरनेशनल फाउण्डेशन के महत्त्वपूर्ण प्रकाशन 'प्रियवादिनी ' स्व. कु. पारुल टोलिया द्वारा लिखित संपादित - अनुवादित • दक्षिणापथ की साधनायात्रा (हिन्दी) प्रथमावृत्ति पूर्ण • महावीर दर्शन (हिन्दी) Mahavir Darshan (Eng + Hindi) • विदेशों में जैन धर्म प्रभावना (हिन्दी) Jainism Abroad ४० • Why Abattoirs - Abolition? (Eng) • Contribution of Jaina Art, Music and Literature to Indian Culture Musicians of India - I came across: Pt. Ravishankar • Indian Music and Media (Eng) • Profiles of Parul (Eng) • पारुल - प्रसून (पुस्तिका तथा सीडी) प्रा. प्रतापकुमार टोलिया द्वारा लिखित संपादित - अनुवादित • श्री आत्मसिद्धिशास्त्र एवं अपूर्व अवसर - द्विभाषी सप्तभाषी आत्मसिद्धि - श्रीमद् राजचन्द्रजी कृत सात भाषाओं में अंग्रेज़ी-हिन्दी भूमिकासह पंचभाषी पुष्पमाला • • दक्षिणापथ की साधनायात्रा (गुजराती) प्रथमावृत्ति पूर्ण विदेशों में जैनधर्म प्रभावना (गुजराती) जिनभारती Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ पंचभाषी पुष्पमाला • महासैनिक (म.गाँधीजी एवं श्रीमद्राजचन्द्रजी विषयक) • Great Warrior of Ahimsa • प्रज्ञाचक्षु का दृष्टिप्रदान-पं.सुखलालजी के संस्मरण (गुज) स्थितप्रज्ञ के साथ - आचार्य विनोबाजी के संस्मरण • गुरुदेव के साथ - गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के विषय में • प्रकटी भूमिदान की गंगा - विश्वमानव (रेडियो रूपक) • जन मुर्दे भी जागते हैं ! - पुरस्कृत, अभिनीत हिन्दी नाटक • संतशिष्य की जीवन सरिता • कर्नाटक के साहित्य को जैन प्रदान Jain contribution to Kannada Literature & Culture • Meditation and Jainism • Speeches and talks in USA and UK • Bhakti Movement in North Saints of Gujarat Jainism in present age My mystic Master Y. Y. Shri Sahajanandaghanji Holy Mother of Hampi • साधना यात्रा का संधान पंथ (दक्षिणापथ - २) दांडीपथने पगले पगले - गाँधी शताब्दी दांडीयात्रा के अनुभव - गुजराती • अमरेली से अमेरिका तक - जीवनयात्रा • पावापुरी की पावन धरती पर से (आर्ष दर्शन) • मेरे मानसलोक के महावीर • कीर्ति-स्मृति - पारुल-स्मृति (दिवंगत अनुज एवं आत्मजा की स्मृतियाँ) • अॅवार्ड - वार्तासंग्रह - गुजराती / हिन्दी • गीत-निशान्त - काव्य-गीत - हिन्दी • वेदन संवेदन (काव्य) - गुजराती जिनभारती की Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ पंचभाषी पुष्पमाला • पराशब्द (निबंध) - हिन्दी • अंतर्दी की अंगुलि पर... (स्मरणकथा) - गुजराती • Award, Bribe Master, Public School Master, Himalyan Betrayal and other stories • Why Vegetarianism? शताधिक में से कुछ महत्वपूर्ण सी.डी, कॅसेट्स । श्रीमद् राजचन्द्र साहित्य श्री आत्मसिद्धि शास्त्र - अपूर्व अवसर • परमगुरुपद (यमनियमादि) • राजपद (विनानयन, हे प्रभु आदि) राजभक्ति • भक्ति-कर्त्तव्य (अन्य भक्तिपद) भक्ति-झरणां (राजभक्ति + मातृ स्वाध्याय) • सहजानंदसुधा (राजभक्तिपद - सहजानंदजीकृत) • ध्यानसंगीत (गुज.: आ. जनकचन्द्रसूरिसह) • धून-ध्यान (सहजात्मस्वरूप धून) • परमगुरुप्रवचन, कल्पसूत्र, दशलक्षण (सहजानंदघनजी) बाहुबलीदर्शन (बाहुबलीजी-श्रीमद्जी-गांधीजी) महावीरदर्शन (श्रीमद् राजचन्द्र तत्त्व आधारित) • ध्यानसंगीत - आनंदलोके अंतर्यात्रा जिनभारती वर्धमान भारती इन्टरनेशनल फाउन्डेशन प्रभात कोम्पलेक्स, के. जी. रोड, बेंगलोर ५६० ००९ पारुल, १५८०, कुमारस्वामी ले आऊट, दयानंदसागर कॉलेज रोड, बेंगलोर ५६० ०७८ फोनः ०८०-२६६६७८८२ / २२२५ १९५२ छुक जिनभारती Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन आध्यात्मिक रिकार्डों एवं कॅसेटों की सृष्टि में भक्तामर के अमर गायक प्रा. प्रतापकुमार टोलिया के स्वरों में आंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त कुछ अमर संगीत-कृतियाँ। ANOL सास्त्र • श्री भक्तामर कल्याण मंदिर महाप्रभाविक नवस्मरण (१,२) श्री ऋषिमंडल स्तोत्र (दोनों) श्री आत्मसिध्धि शास्त्र पंचस्तोत्र-सुप्रभात स्तोत्र जय जिनेश, जिनेश्वर आरती जिन वन्दना, जिनेन्द्र दर्शन महावीर दर्शन-वीर वन्दना दादागुरु दर्शन,इकतीसा . महायोगी आनन्दघन के पद . राजपद-परमगुरु पद . आत्मरवोज, अभीप्सा आध्यात्मिक गीत-गज़ल अवसर वेर बेर नहीं आवे... रत्नत्रय-दशलक्षण व्रत कथा ध्यान-संगीत, धून और ध्यान अमरिका की त्रिविध-यात्रा स्पंदन-संवेदन, प्रभातमंगल ऐसे २४ रिकार्ड, ५७ कॅसेट्स,पूर्ण सूची मंगवाकर डाक से प्राप्त करें। वर्धमान भारती VARDHAMAN BHARATI प्रभात काम्पलॅक्स, के.जी. रोड, बैंगलोर-560009 0:22251552, 26667882 Prabhat Complex, K.G.Road, Bangalore-5600090:22251552,26667882 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज! आज का मंगल प्रभात!! वर्तमान का यह सुवर्णक्षण!!! परमात्मा भगवान महावीर ने इसीलिए इस "स्व-काल" की "इणमेवं खणं वियाणिया' कहकर सूत्ररूप प्रदान करवाया था। यहाँ युगदृष्टा आजन्मज्ञानी श्रीमद् राजचन्द्रजी ने भी महत्ता बतलाई है - बढ़ाई है इस सुवर्णमय वर्तमान के स्व-काल की। अपने "अप्रमादयोग' की साधना के द्वारा उन्होनें "समयं गोयम्। मा पमायए।” की गुरु गौतम गणधर प्रति की भगवद्-आज्ञा को सुप्रतिपादित, सुप्रकाशित किया है - बहे जा रहे “वर्तमान'' को पल पल का उपयोग कर लेने की युक्ति दर्शाते हुए! प्रातः उठते ही देखें, अनुचिंतन करें और सुगंध-आनंद ले उनकी इस पुष्पमाला के प्रथम पुष्प का ही- बीत चुकी है। रात, आया है प्रभात, मुक्त हुए हैं निदा से। प्रयत्न करें (अब) भाव निद्रा को टालने का। प्रमाद की भाव-निद्रा को त्यागते हआ हम लीन बनें इस सारी ही पुष्पमाला की सुवास का आनंदलाभ पाकर आज के इस दिवस को और सारे जीवन को धन्य बनाएँ। इस अप्रमत्त भाव के पुष्पमाला-संदेश से आप का आज का दिन मंगलमय बनें, आपका जीवन मंगलमय बनें, सत्पुरुषों का योगबल आप पर उतरें। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः / -जिनभारती पुष्पमाला - महात्मा गाँधीजी की दृष्टि में : 'अरे! यह पुष्पमाला तो पुनर्जन्म की साक्षी है।" (प्रज्ञाचक्षु पं. श्री सुखलालजी से वार्ता में।))