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पंचभाषी पुष्पमाला अंग्रेज़ी, बंगला एवं दक्षिण भारत के विशाल जैन साहित्य की प्रधान भाषा कन्नड़ - ये पांच भाषाएँ प्रथम पसन्द की गईं हैं। __ श्रीमदजी-सहजानंदघनजी का योगबल एवं अनुग्रह हमारा प्रेरक सम्बल है। सुश्री विमलाताई के इस आयोजन-अभियान को मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त हैं। श्रीमद्-साहित्य के अनेक अध्येता सत्पुरुषों-विद्वानों का हमें अनुमोदन प्राप्त हुआ है, तो एक स्वयं गहन स्वाध्यायी एवं साधनारत आत्मबंधु की अति विनम्र, सहज-सरल, उल्लसित भावयुक्त महती गुप्त अर्थसहाय भी। __ श्रद्धा है, सत्-पुरुषार्थ-जनित संकल्प है, कि यह 'पंचभाषी पुष्पमाला' भी श्रीमद्जी के योगबलअनुग्रहबल से इन छोटे हाथों के द्वारा अभूतपूर्व सफल प्रकाशन और प्रसारण पाएगी। यदि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का 'गीतांजलि' जैसा एवं आचार्य विनोबा भावे का 'गीताप्रवचन' जैसा प्रेरक साहित्य अनेक भाषाओं में फैल सकता है, तो श्रीमद् राजचंद्रजी का भी यह विश्वजनोपयोगी साहित्य विश्व-समस्त की भाषाओं में क्यों नहीं महकन लगे? इस सन्दर्भ में दृष्टव्य है श्री सहजानन्दघनजी
RD जिनभारती