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पंचभाषी पुष्पमाला चाहिए, अनूदित होनी चाहिए। अशान्त, पथभ्रान्त विश्व के लिए इस में शान्ति एवं परम प्रशान्ति की गुरुचाबी है। वर्तमान के सत्पुरुषों-परमगुरुजनों की यह मनीषा, भावना, प्रेरणा है। ___ श्रीमद् राजचन्द्रजी की आत्मज्ञान के सर्वोच्च सुवर्ण-शैल ऐसी चिरंतन अनुपम कृति 'श्री आत्मसिद्धि शास्त्र' को स्वरस्थ करने, गाने, रिकार्ड करने का हमें ३१ वर्ष पूर्व सौभाग्य प्राप्त हुआ। फिर उनके एवं अनेक वर्तमान परमपुरुषों के परम अनुग्रहरूप से फिर इस कृति को 'सप्तभाषी आत्मसिद्धि' शीर्षक ग्रंथरूप में भी संपादित करने का भी हमें विशेष सौभाग्य उपलब्ध हुआ।
'सप्तभाषी आत्मसिद्धि' ग्रंथ के सृजन की एवं श्रीमद्जी की सर्वोपकारक वीतराग-वाणी को विश्वभर में प्रसारित करवाने की उपर्युक्त सर्वाधिक प्रेरणा थी - 'सद्गुरु राज विदेह के चरणों में पराभक्तिवश आत्मसमर्पण करनेवाले', हंपीकर्णाटक के श्रीमद् राजचन्द्र आश्रमस्थ गुरुदेव श्री सहजानंदघनजी (भद्रमुनि) की। उनके शीघ्र जीवनोपरान्त रुका हुआ 'सप्तभाषी आत्मसिद्धि' का सम्पादन-प्रकाशन करवाने का कसौटीपूर्ण महत्
* जिनभारती