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पंचभाषी पुष्पमाला
(३) तुम जो चाहते हो वह तुम्हें क्यों नहीं
मिलता है ?
(४) चित्रविचित्रता का प्रयोजन क्या है?
१०. यदि तुम्हें धर्म का अस्तित्व प्रमाणभूत प्रतीत होता हो और उसके मूल तत्त्व में संदेह - आशंका हो तो नीचे कहता हूँ :
११. सर्वात्म में, सभी प्राणियों में समदृष्टि, -
१२. अथवा, किसी प्राणी को जीवितव्य रहित
प्राणरहित - न करो, उस की क्षमता से अधिक काम उसके पास से मत लो। किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो ।
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१३. अथवा सत्पुरुषों ने जिस मार्ग का अनुसरण किया, उस मार्ग को ग्रहण करो ।
१४. मूल तत्त्व में कहीं भी भेद नहीं है, भेद केवलमात्र दृष्टि में है, ऐसा मानकर और आशय को समझकर पवित्र धर्म में प्रवर्तन करो ।
१५. तुम चाहे किसी भी धर्म को मानते हो, उसका मुझे कोई पक्षपात नहीं है। कहने का तात्पर्य केवल इतना ही है कि जिस मार्ग से संसारमल
जिनभारती