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पंचभाषी पुष्पमाला ७७. सुबह के समय स्मृति दिलाई है फिर भी यदि
कुछ अयोग्य हुआ हो तो पश्चात्ताप करो और
शिक्षा (बोध) ग्रहण करो। ७८. यदि कोई परोपकार, दान, लाभ या परहित कर
के तुम आए हो तो आनंद का अनुभव करो और निरभिमानी रहो।
७९. जाने-अनजाने में भी यदि कुछ विपरीत हुआ हो
तो अब ऐसा काम मत करो।
८०. व्यवहार के विषय में नियम बना लेना और
अवकाश के समय में संसार-निवृत्ति की खोज करना।
८१. जिस प्रकार आज के उत्तम दिन का आनंद तुमने
प्राप्त किया है, उसी प्रकार संपूर्ण जीवन का आनंद प्राप्त करने के लिए तुम आनंदित हो जाओ तो ही इस - (- मनुष्य जन्म की सार्थकता है, तो ही इस लेखक - राजचन्द्र - को आनंद, संतोष होगा।
संकेतार्थ | - सम्पादक) ८२. आज जिस क्षण तुम मेरी कथा का मनन कर रहे
ॐ जिनभारती