________________ आज! आज का मंगल प्रभात!! वर्तमान का यह सुवर्णक्षण!!! परमात्मा भगवान महावीर ने इसीलिए इस "स्व-काल" की "इणमेवं खणं वियाणिया' कहकर सूत्ररूप प्रदान करवाया था। यहाँ युगदृष्टा आजन्मज्ञानी श्रीमद् राजचन्द्रजी ने भी महत्ता बतलाई है - बढ़ाई है इस सुवर्णमय वर्तमान के स्व-काल की। अपने "अप्रमादयोग' की साधना के द्वारा उन्होनें "समयं गोयम्। मा पमायए।” की गुरु गौतम गणधर प्रति की भगवद्-आज्ञा को सुप्रतिपादित, सुप्रकाशित किया है - बहे जा रहे “वर्तमान'' को पल पल का उपयोग कर लेने की युक्ति दर्शाते हुए! प्रातः उठते ही देखें, अनुचिंतन करें और सुगंध-आनंद ले उनकी इस पुष्पमाला के प्रथम पुष्प का ही- बीत चुकी है। रात, आया है प्रभात, मुक्त हुए हैं निदा से। प्रयत्न करें (अब) भाव निद्रा को टालने का। प्रमाद की भाव-निद्रा को त्यागते हआ हम लीन बनें इस सारी ही पुष्पमाला की सुवास का आनंदलाभ पाकर आज के इस दिवस को और सारे जीवन को धन्य बनाएँ। इस अप्रमत्त भाव के पुष्पमाला-संदेश से आप का आज का दिन मंगलमय बनें, आपका जीवन मंगलमय बनें, सत्पुरुषों का योगबल आप पर उतरें। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः / -जिनभारती पुष्पमाला - महात्मा गाँधीजी की दृष्टि में : 'अरे! यह पुष्पमाला तो पुनर्जन्म की साक्षी है।" (प्रज्ञाचक्षु पं. श्री सुखलालजी से वार्ता में।))