Book Title: Panchbhashi Pushpmala Hindi
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 26
________________ पंचभाषी पुष्पमाला ર૪ नष्ट हो उस भक्ति, उस धर्म और उस सदाचार का तुम अनुसरण - सेवन - करो। १६. तुम चाहे कितने भी परतंत्र क्यों न हो, फिर भी मन से पवित्रता का विस्मरण किए बिना आज के दिन को रमणीय बनाओ। १७. आज यदि तुम दुष्कृत की ओर जा रहे हो तो मुत्यु का स्मरण करो। १८. यदि तुम आज किसी को दुःख देने के लिए तत्पर हुए हो तो अपने दुःख-सुख की घटनाओं की सूची का स्मरण कर लेना। १९. राजा हो या रंक - चाहे जो भी हो, किंतु यह विचार करके सदाचार के मार्ग पर आना कि इस काया के पुद्गल थोड़े समय के लिए केवल साड़े तीन हाथ भूमि माँगनेवाले हैं। २०. तुम राजा हो तो चिंता नहीं, परंतु प्रमाद मत करो, क्योंकि तुम सर्वाधिक नीच, अधम से अधम, व्यभिचार का, गर्भपात का, निर्वंश का, चांडाल का, कसाई का तथा वेश्या का ऐसा कण खाते हो। तो फिर...? @ जिनभारती

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