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સં. પ્રવીણચંદ્ર પરીખ અને ભારતી શેલત
Nirgrantha
८. क प्रेषणप्रबोधित वागड देशीय दश दश शत श्रावक। सुविहित निज कठिन क्रियाकरण।
पिंडविशुद्धादिप्रकरणं। जिनशासन प्रभावक। श्री जिनवल्लभसूरि ॥ तत्पट्ट० स्वशक्तिवशीकृत विकृत चतुष्पष्टि योगिनी चक्र। द्वि पंचाशर्द्धन (?) सिंधुदेशीयपीर। अंबड श्रावक कर लिखित स्वर्णाक्षर वाचना विर्भूत युगप्रधानपदवीसमलंकृत
पंचन
दीसाधक श्री जिनदत्तसूरि ॥ तत्पट्ट० नरमणि मंडित भालस्थल। श्री जिनचंद्रसूरि त० लं० नेमिचंद्र परीक्षित। प्रबोधोदयादि ग्रंथ रूप षट्विंशवाद साधित विधिपक्ष। खरतरगच्छ स्वच्छ सूत्रणा सूत्रधार। श्री जिनपतिसूरि॥ तत्पट्ट० प्रभा० - लाडउल विजापुर प्रतिष्टित श्री शांतिवीर विधिचैत्य श्री जिनेश्वरमूरि॥ तत्पट्ट० श्री जिनप्रबोधसूरि त० राज चतु०ष्टय प्रतिबोधो बद्ध राजगच्छ संज्ञा शोभित श्री जिनचंद्रसूरि॥ तत्पदृ० श्री शबुंजय मंडन खरतरवसति प्रतिष्टापक स्वगच्छ प्रतिपालन बद्ध कक्ष विख्यातातिशयलक्ष श्री जिनकुशलमूरि॥० श्री जिनपद्यसरि॥ त० श्री जिनलब्धसूरि। त० श्री जिनचंद्रसूरि। त० देवांगनावसरवासप्रक्षेपोदित संघपति पक्षधुदय श्री जिनोदयसूरित० श्री जिनराजसूरि॥ त० स्थान(ने) २ (स्थाने) स्थापित सारज्ञानभांडागार श्री जिनभद्रसूरि त० श्री जिनचंद्रसूरि ॥ तत्पट्ट० पंचयक्ष साधक विशिष्टक्रिय श्री जिनसमुद्रसूरि॥ तत्प० तपोध्यान वियान चमत्कृत पातिसाहि पंचशतवंदि॥ मोचन सम्मानित श्री जिनहंससूरि। त० पंचनदीसाधकाधिक ध्यान-बल शफली कृत यवनोपद्रवातिशयविराजमान जिनमाणिक्यसूरि तत्पट्टालंकार दुर्वार वादि विजयलक्ष्मीशरण। पूर्व क्रियासमुद्धरण श्री जिनचंद्रसूरि
विज२१. यि राज्ये॥ पंचविंशति देवकुलिकालंकृतं। श्री शांतिनाथ विधिचैत्यम् प्रभूतद्रव्य व्ययेन समुच(द्ध)तम्
समूलम्। श्री:
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